सोमवार, 28 जुलाई 2008

अध्याय 12 ::: निष्कर्ष

प्रिय पाठक, प्रभु यीशु मसीह जल्दी ही फिर आ रहे हैं। मैं यह इसलिये जानता हूँ क्योंकि प्रभु यीशु ने यह सारी बातें पहले से ही अपने चेलों को बता दी थीं और वे बाइबल में लिखी हैं। अपने चेलों के साथ एक बार के वार्तालाप में चेलों के पूछने पर उन्होंने बताया की अंत समय (यीशु मसीह के फिर से आने से तुरंत पहले का समय) को पहचानने के कुछ चिह्न हैं जिन्हें देखकर हम पहचान सकते हैं कि उसका आना निकट है। आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि वे निशान अब स्पष्ट रीति से प्रकट होने लगे हैं।

तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा (अफवाह) सुनोगे, तो घबरा न जाना क्योंकि इन का होना अवश्य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा। क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और जगह जगह अकाल पड़ेंगे, और भुकम्प होंगे। ये सब पीड़ाओं का आरम्भ होंगी।

[मत्ती 24:6-8]

यदि ऊपर लिखे यीशु-वचन को आपने गौर से पढ़कर उस पर आज की दुनिया की परिस्थिति के परिपेक्ष्य में विचार किया है तो आप खुद ही समझ सकते हैं कि हमारे पास कितना कम समय है। हम सही समय तो नहीं जानते लेकिन ये ज़रूर समझते हैं कि यीशु मसीह का आना बहुत निकट है।

प्रभु यीशु दूसरी बार मानव रूप में नहीं आने वाले हैं और न ही उनके आने का उद्देश्य सुसमाचार बताना या विश्वास दिलाना है। वह न्याय के लिये आने वाले हैं। उनके आने के बाद सच्चे विश्वासी उनके साथ स्वर्ग में चले जाएँगे और जो पीछे रह जायेंगे उनके लिये सिर्फ पछताना और न्याय का इंतजार ही बाकी रह जाएगा।


***

दूर से सभी धर्म और विश्वास एक जैसे ही दिखते हैं पर जब हम नज़दीक जाते हैं और गौर करते हैं तो उनके चरित्र और शिक्षाओं में बहुत से अंतर हमको दिखाई देने लगते हैं। ईसाई धर्म भी कोई अपवाद नहीं है, परंतु मैं ईसाई धर्म के लिये नहीं मसीही विश्वास के लिये आपको उत्साहित कर रहा हूँ।

हमें ‘परमसत्य’ की खोज करने की और उसमें ही विश्वास करने की आवश्यकता है। मैं आपको उत्साहित करता हूँ कि आप सभी गुरुओं और कथित ईश्वरों के जीवन से तथा उनकी शिक्षाओं से प्रभु यीशु मसीह के जीवन की तथा उनकी शिक्षाओं की तुलना कीजिए और जो आपको सही लगे उसका चुनाव कीजिए। आप यीशु मसीह के जैसा जीवन जी सकते हैं। उनका अनुसरण करके आप कभी धोखा नहीं खाएँगे और न ही कभी आपको खेद होगा।

यदि आप अपने सारे धार्मिक रीतिरिवाजों और संस्कारों का पालन करके थक चुके हैं और अभी तक मोक्ष के बारे में आपको कोई आश्वासन नही है, तो थोड़ी रुकिए और विचार कीजिए। सालों तक निरर्थक प्रार्थनाएँ कर करके आप थक चुके हैं तो यीशु मसीह के पास आइये।

मैं आपको एक नम्र चुनौती दे सकता हूँ कि जब आप सब जगह दुआ करके थक चुके हों और कोई बात न बने तो आप यीशु मसीह से विश्वास के साथ प्रार्थना करके देखें। मैं जानता हूँ कि आपको अपनी प्रार्थना का उत्तर ज़रूर मिलेगा। वो आपसे प्यार करते हैं।

आप प्रभु यीशु पर विश्वास कीजिए। उनपर विश्वास कर आप एक शांति से भरी, आशीषित और भरपूर जिन्दगी जी सकते हैं जो पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होगी और ऐसा करके आप अपने इस जीवन का उद्देश्य पूरा कर सकेंगे। शारीरिक मृत्यु के बाद के जीवन के लिये भी आपके पास एक आशा होगी।


***

अगर आपने विश्वास किया है और आप नये जन्म का अनुभव पाये हुए विश्वासी हैं तो भी अपनी जिन्दगी परमेश्वर के सुपुर्द कर दीजिए और संपूर्ण विश्वास और आज्ञाकारिता में अपना जीवन बिताइये। पाप से बचे रहिये और अगर हो सके तो उद्धार के बड़े काम में शामिल हो जाइए ताकि परमेश्वर का राज्य जल्द ही आये। सच में, फसल तो बहुत है पर काटने वाले बहुत थोड़े हैं।

मैंने बाइबल में इस बारे में एक सिद्धांत पाया है कि हम अपने से शुरू करें और फिर अपनों तक और फिर दुनिया के छोर तक इस सुसमाचार को पहुँचाएँ (प्रेरितों के काम 1:8)।

यह सिद्धान्त मैंने अपनी हवाई यात्रा में भी कई बार देखा। उसमें बताया जाता है कि किसी आपातकालीन परिस्थिति में ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर मास्क ऊपर के केबिनेट से लटक जाते हैं। यात्री किसी की भी मदद करने से पहले अपने आप को सुरक्षित करें, ऐसा सिखाया जाता है। माँ-बाप भी पहले अपने आप को सुरक्षित करने के बाद ही अपने बच्चों को मास्क लगाने में मदद करें। यह बड़ी अजीब बात लग सकती है लेकिन सच है कि यदि हम अपने आप को पहले मास्क लगाकर सुरक्षित न करें तो अपना दम घुटने पर न तो हम अपनी मदद कर सकते हैं और न दूसरों की।

मसीही विश्वास में भी हमें पहले खुद विश्वास करना ज़रूरी है। यह बहुत ज़रूरी है कि हम स्वयं पहले प्रभु यीशु में विश्वास करें और सनातन जीवन प्राप्त करें। फिर अपने परिवर्तित जीवन की गवाही से, प्रार्थनाओं से और वचन के द्वारा अपने परिजनों को, रिश्तेदारों को, अपने सहकर्मियों को और मित्रों को सुसमाचार सुनाएँ और उन्हें भी पाप क्षमा तथा अनंत आत्मिक जीवन की ओर आगे बढ़ाएँ। इसके बाद हम अपने शहर, राज्य, देश और दुनिया के छोर छोर तक जाकर परमेश्वर के प्रेम का प्रचार कर सकते हैं।


***

इस के साथ हम अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव में आ पहुंचे हैं। मैं आशा करता हूँ कि आपने मेरे साथ इस यात्रा में आनंद उठाया होगा। चलिए, हम इसे एक सुखद मोड़ पर खत्म करें और आगे के लिए परमेश्वर के साथ भरपूर जीवन जीने का निर्णय लें। प्रभु आपको आशीष दें।

आइए, हम साथ में प्रार्थना करें –

“प्रिय प्रभु य़ीशु, हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने हमें इस क़िताब को साथ पढ़ने का मौका दिया। हम आपकी महानता के कारण आपकी जय-जयकार करते हैं। प्रभु, पाप क्षमा कर नया जीवन दीजिए ताकि हम बहुतायत के जीवन का अनुभव कर सकें। जैसे अब हमने आपको जान लिया है तो हम पाप में तो मर गए पर आप में जीवित हैं। कृपा कर हमारे जीवन का नियंत्रण अपने हाथों में ले लीजिए ताकि हम विश्वास में बढ़ते चले जाएँ और आपकी महिमा करें। प्रभु, हम आपको स्वर्ग में देखना चाहते हैं और स्वर्गदूतों के साथ आपकी आराधना करना चाहते हैं। आपका अनुग्रह और विश्वास हमें दीजिए जिससे हम आपकी आशीषों से भरा एक सार्थक जीवन जी सकें। आमीन।”



प्रश्नों के समाधान जानने के लिये क्लिक करें