सोमवार, 28 जुलाई 2008

अध्याय 10 ::: आशीषें

वचन पर ध्यान और मनन के समय में एक बार परमेश्वर ने एक बड़ी महत्वपूर्ण बात मुझे समझाई – हमारे शरीर के वे भाग जो नहीं दिखते वो उनसे ज्यादा महत्व रखते हैं जो कि हमें दिखते हैं।
हम हाथों के, आंखों के, पैरों के और बालों के बिना जीवित रह सकते हैं पर दिल के, गुर्दों के या दिमाग के बिना हमारा जीवित रहना नामुमकिन है।

हम अपनी दुनियावी आशीषों के, जो दिखती हैं, पीछे लगे रहते हैं और बढ़ चढ़कर बताते हैं पर आत्मिक आशीषों को भूल जाते हैं या उनकी धुन में नहीं रहते हैं। सच्चाई ये है कि भौतिक वस्तुएँ अच्छी तो हैं और प्रभु का धन्यवाद करने योग्य भी हैं पर इससे कहीं ज्यादा धन्यवाद के योग्य हमारी वो आशीषें हैं जो अनंतकाल तक हमारे साथ रहेंगी। परमेश्वर सिखाता है कि यदि हम उसकी पवित्रता की और उसके राज्य की खोज करें तो बाकि ये सब वस्तुएँ तो हमें स्वतः ही मिल जाएँगी।

“परमेश्वर अपने भक्तों के लिये बहुत सी आशीषों का वर्णन अपने वचन में करते हैं जिनमें सुख-शांति, प्रेम, सफलता तथा जरूरतों के पूरे होने के साथ ही आत्मिक आशीषें जैसे पाप-क्षमा तथा मोक्ष सम्मिलित हैं।”

कई बार लोग चमत्कार को देखकर प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं या अपनी दुनियावी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए उनके पास आते हैं। मैं इस बात पक्षधर नहीं हूँ। मैं मानता हूँ कि परमेश्वर पिता है जिससे प्रेम करने के लिए हमें किसी चमत्कार की आवश्यकता नहीं है। जब हम उसमें विश्वास करने लगते हैं तो आश्चर्यकर्म तो हमारे जीवन का भाग ही बन जाते हैं। हम परमेश्वर पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं करते कि वो आश्चर्यकर्म करने वाला परमेश्वर है बल्कि इसलिए वो ही हमारा सृष्टिकर्ता परमेश्वर है जो हमें जीवनभर संभालता है और हमें अनंतकाल का सुखमय जीवन देता है।

आप भी उस पर विश्वास करें ताकि आप उससे प्रेम कर सकें और उससे आशीषें पा सकें।

“और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएँ थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएँ सदा बनी रहती हैं।”

[2 कुरिन्थियों 4:18]

बाइबल कई अलग अलग जगहों पर ये बात सिखाती है परंतु मैं इस बात को अपने विश्वासी जीवन में बहुत देर के बाद सीख सका।


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बाइबल में वर्णित आशीषें

ऊपर लिखे महत्वपूर्ण तथ्य को सीखने से पहले, मैं अपने आपको परमेश्वर कि भलाईयों के और उसके प्रेम के बारे में अपने दोस्तों को बताने में बहुत सीमित पाता था, खास तौर पर उन्हें जो कि धनी परिवारों से थे क्योंकि यीशु मसीह पर विश्वास न करने के बावजूद भी उनके पास वो सब दुनियावी चीजें थी जो मैं कहता था कि प्रभु यीशु ने मुझे दी थीं और उन्हें भी दे सकते थे। इस प्रकार प्रभु यीशु का सच्चा सुसमाचार मैं उनको नहीं दे पाता था।

मैं आज ये मानता हूँ कि भौतिक चीजें अच्छी हैं और हमारे जीवन के लिये ज़रूरी भी हैं पर वो महत्वपूर्ण नहीं है। भौतिक वस्तुएं प्रदान करना परमेश्वर के उन सब कामों में से बस एक काम है जो वो अपने लोगों के लिये करता है।

“इसलिये पहले तुम उसके राज्य और धार्मिकता (पवित्रता) की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ तुम्हें स्वतः ही मिल जाएँगी।”

[मत्ती 6:33]

परमेश्वर हमें भरपूरी (बाहुल्यता) का जीवन देने का वायदा करता है। प्रभु यीशु इस बहुतायत के जीवन में बहुत सी आशीषों का वर्णन करते हैं जो कि हमें तब तक नहीं मिल सकती जब तक कि हम उनपर विश्वास न करें। परमेश्वर हमारे विश्वास की मात्रा के अनुसार हमें सब भली वस्तुएँ देता है।

यदि परमेश्वर की बताई हुई आशीषों की हम एक सूची बनाएँ तो इसमें पापों की क्षमा, परमेश्वर से जुड़ना, ईश्वर से हमारे अलगाव का समाप्त होना, अनंत जीवन तथा सच्ची खुशी जो कि परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती इसका एक भाग होंगी। परमेश्वर का पवित्र प्रेम, उसकी शांति, उसकी काबलियत पर विश्वास, हमारे जीने के लिए उसकी कृपा और प्रभु यीशु के नाम से की गई प्रार्थनाओं के उत्तर भी उसी सूची में सम्मिलित होंगी। शारीरिक आशीषें जैसे स्वस्थ शरीर और सब प्रकार की बीमारियों से छुटकारा, हर परिस्थिति में परमेश्वर का साथ, पाप तथा मृत्यु पर विजय, परमेश्वर की पवित्रता का हमको मिलना, हर परीक्षा की घड़ी में एक रास्ता होना, भयानक परिस्थिति में उसका साहस और जीवन के निर्णय लेने के लिये बुद्धि और ज्ञान भी हमें परमेश्वर के वचन में वायदे के रूप में दिये गये हैं।

बाइबल में परमेश्वर की बहुत सी आशीषों का वर्णन है जो कि उनके लिये हैं जो उसके वचन के अनुसार उसके पीछे चलते हैं। भौतिक आशीषें, सफलता, वैभव, आदर, बहुतायत, विजय और परमेश्वर का अनुग्रहकारी साथ उसमें वर्णित हैं। नये नियम में भौतिक आशीषों के साथ आत्मिक आशीषों का भी वर्णन है जैसे – परमेश्वर द्वारा पाप क्षमा कर हमें एक नई सृष्टि बनाना, परमेश्वर की संतान और उसके उतराधिकारी बनना, स्वर्गीय स्थानों तक पहुंच होना, याजकों का समाज होना, सेंतमेंत मोक्ष का दिया जाना, स्वर्ग में प्रवेश का आश्वासन और दण्ड से पार होकर परमेश्वर की छत्रछाया में आ जाना, माँगने वाला नहीं लेकिन परमेश्वर द्वारा देने वाला बनाया जाना, पूँछ नहीं बल्कि सिर ठहराना इत्यादि।

मैं इन सब बातों की आध्यात्मिक विवेचना नहीं करूंगा। मैं आपको सिर्फ यह बताना चाहता हूँ कि परमेश्वर ने यह सब परमेश्वर ने मुझे दिया है।


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परमेश्वर की शांति


मैं आपको कोई झूठी तसल्ली नहीं दूँगा कि प्रभु यीशु को जान लेने के बाद आपके जीवन की सभी परेशानियां खत्म हो जाएँगी या आप फिर कभी पाप नहीं करेंगे। परमेश्वर के पास आना फूलों की सेज के समान नहीं है, पर हाँ, यह ज़रूर कहूँगा कि जब उसके हाथों में हमारे जीवन की बागडोर होती है तो हमारे जीवन में हर परिस्थिति में एक शांति हमारे साथ रहती है जो कि हमें इस दुनिया में नहीं मिलती, और पाप के विरुद्ध हममें एक सामर्थ काम करती है जो हमें सिखाती है कि हम क्या करें और क्या नहीं।

“मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हे देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हे नहीं देता, तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।”

[युहन्ना 14:27]

“तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिल्कुल परे है, तुम्हारे ह्रदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।”

[फिलिप्पियों 4:7]

प्रभु यीशु में विश्वास कर लेने के बाद भी एकाएक हमारी सभी मुश्किलें दूर नहीं हो गईं थी, परंतु असीम शांति हमारे जीवन में आ गई जिससे हम हरेक दुःख की घड़ी भी सहजता से पार कर लेते हैं।

सन 2005 से 2006 के बीच का एक ऐसा समय हमारे जीवन में आया जिसमें हमने बहुत आशीषें भी पाईं और दुख भी झेले। अपने बुरे और अच्छे समय में हम परमेश्वर में विश्वास रखे रहे और वो हमें हमारी हरेक कठिन परिस्थिति से छुड़ाता रहा। उसकी शांति निरंतर हमारे जीवन में बनी रही।

अपने उत्तम समय में परमेश्वर ने बड़ी अद्बुत रीति से काम किया। वो पापा को 2005 में विश्वास में लाया और उनको उनकी शराब पीने की बुरी आदत से छुड़ाया। प्रार्थनाओं के द्वारा शारजाह में हमें दूसरी नौकरी मिली और पैसे कि परेशानियाँ भी खत्म होने लगीं।

मैं और मेरी पत्नी प्रेरणा जुलाई 2005 में शारजाह आए। मैं तो नौकरी वीज़ा पर ही था पर वो विज़िट वीज़ा पर आई थी। अक्तूबर में उसे अपना वीज़ा बदलने के लिये ईरान के किशिम द्वीप पर जाना पड़ा। सामान्य परिस्थिति में 1 दिन में जो वीज़ा मिल जाता है उसमें उसे 7 दिन लग गए परंतु इस यात्रा के दौरान भी वो कई लोगों को परमेश्वर के प्रेम के बारे में बताती रही जिसमें कई महिलाओं ने प्रभु यीशु पर विश्वास भी किया। वापस आने के बाद हमें पता चला कि अपनी इस यात्रा के दौरान वह गर्भवती थी और ठीक संभाल न हो पाने के कारण या कमज़ोरी के कारण वह गर्भ संपूर्ण नहीं हो पाया।

हम थोड़े दुखी तो ज़रूर हुए पर निराश नहीं। हमारा परमेश्वर हमें हर परिस्थिति में आशा देता है और हम जानते थे कि अभी भी नियंत्रण में था।

नवम्वर के बाद हमें सुनने को मिला कि पापा अब प्रार्थना में मन नहीं लगाते थे। दिसम्बर के बाद तो उन्होंने चर्च जाना बंद ही कर दिया और शराब पीने की अपनी पुरानी आदत में पड़ने लगे। वो फिर से मम्मी को सताने लगे, इसलिए मम्मी चण्ड़ीगढ़ चली गई जहाँ पंकज फैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स कर रहा था।

जनवरी 2006 की एक ठण्डी सुबह जब पंकज और मम्मी चर्च जा रहे थे, तभी मोटरसाइकिल में मम्मी की साड़ी फंस जाने के कारण वो दोनों एक बहुत बड़ी दुर्घटना के शिकार हो गए। पंकज को तो ज्यादा चोट नहीं लगी पर मम्मी का पैर घुटने पर से टूट गया और उनके हाथ और मुँह पर भी चोटें आई। फिर भी मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि परमेश्वर ने उनको मौत को मुँह से बचा लिया। पंकज और उसके दोस्तों ने मिलकर मम्मी को अस्पताल पहुँचाया और बहुत सेवा की।

इस दौरान पापा भी वहाँ पहुँचे और उनको वापस जयपुर ले जाने की जिद करने लगे। वो हिल भी नहीं सकती थी और पापा फिर भी उनको 10 घण्टे की यात्रा कराकर जयपुर ले जाने पर अड़े रहे। सबने उनको बहुत समझाया पर वो टस से मस नहीं हुए और वापस जयपुर ले ही गए। इसके कारण प्लास्तर हिल जाने से कुछ परेशानियाँ भी पैदा हो गईं जिनका इलाज जयपुर में कराया गया। वहाँ वो नानाजी के घर में रही। पापा रातबरात फोन कर उनको परेशान करते ही रहते थे। वो ठीक नहीं हो पा रही थीं।

मैं जब यह सुनता तो अपने आपको असहाय पाता था और परमेश्वर से प्रार्थना करता रहता था।

पापा अपने जीवन के सबसे बुरे स्वभाव का प्रदर्शन कर रहे थे। उनके इस स्वभाव से दादाजी का दिमागी संतुलन बिगड़ने लगा और उन्हें कहीं कोई आशा नज़र नहीं आती थी। आखिरकार फरवरी के अंत में वो हमें छोड़कर इस दुनिया से चले गए।

पापा का शराब पीने का क्रम फिर भी नहीं रूका और उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता चला गया। कुछ ही दिनों में उन्हें लीवर की गम्भीर बीमारी हो गई और अगले 2 महीने उन्हें अस्पताल में गुजारने पड़े। मई में वो चल बसे।

उनकी मृत्यु से तुरंत पहले मैं जयपुर पहुँचा, और मृत्योपरांत प्रेरणा को भी जयपुर बुला लिया। अंत्येष्ठी के बाद हम लोग वापस शारजाह आ गये। वापस आने के बाद एक बार फिर हमें पता चला कि प्रेरणा गर्भवती थी परंतु कुछ विषमताओं के कारण यह दूसरा गर्भ भी जुलाई 2006 में चला गया।

नवम्बर 2005 से जुलाई 2006 तक निरंतर हमारे जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियाँ आती रहीं। यह किसी भी सामान्य आदमी को तोड़ने के लिये काफी हैं, परन्तु परमेश्वर हमारे साथ बना रहा और हरेक परिस्थिति में हिम्मत दी। प्रभु ने हमें विश्वास के नये आयाम इस अंतराल में सिखाए। कभी कभी परमेश्वर अपने लोगों के जीवन में ऐसा करता है जिससे कि वो उसमें खिल सकें और उसकी सुगंध इस दुनिया में फैला सकें। यह ऐसा ही है जैसे एक बागवान अपने बगीचे के पौधों की काँट-छाँट करता है ताकि फूल सही तरीके से खिलें और बगीचे की सुंदरता को बढ़ाएँ।

हमारे विश्वास के कारण हमारी दिक्कतें टल नहीं गई परंतु परमेश्वर की शांति हमारे साथ बनी रही।

“मैं ने ये बातें तुमसे इसलिये कही हैं, कि तुम्हे मुझमे शान्ति मिले; संसार में तुम्हे कलेश होता है, परन्तु ढाढस बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।”

[युहन्ना 16:33]

प्रभु यीशु के उपरोक्त वचन से हमें बहुत ढाढ़स और बल मिलता है कि हर परिस्थिति में उसमें विश्वास करते हुए हम उसके साथ चलते रहें। उसकी शांति हमेंशा हमारे जीवन में बनी रहती है।

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सबके लिए प्रेम

परमेश्वर ने अपना प्रेम मुझपर इस प्रकार प्रकट किया कि जब मैं पाप ही में था तब ही मसीह मेरे लिये मारा गया। उसने क्रूस पर अपने प्रेम की लम्बाई-चौड़ाई-ऊँचाई-गहराई मुझे दिखाई है और फिर स्वयं मुझसे प्रेम दिखाने के बाद उसने मुझसे कहा कि मैं भी वैसा ही प्रेम इस दुनिया में दिखाऊँ। उसने मुझे अपने गुनाहगारों को वैसे ही माफ करना सिखाया है जैसे कि उसने मुझे माफ किया है। मत्ती 9:13 से आगे प्रभु यीशु ने यह बात बड़े अजीब क्रम में बताई हैं कि हम अपने गुनाहगारों को माफ करें ताकि परमेश्वर हमें माफ करे, और यदि हम न करें तो परमेश्वर भी न करे।

मेरे जीवन में ज्यादा लोग ऐसे थे जिनसे मुझे माफी माँगनी थी बजाय उनके जिनको मुझे माफ करना था। मैंने पहले परमेश्वर से और फिर उनसे, जिनसे मुझे माफी माँगनी थी, माफी माँगी। तब से लेकर अब मैं हर दिन अपनी रोजाना की गलतियों से पश्चाताप कर परमेश्वर के योग्य जीवन बिताता हूँ।

परमेश्वर ने मुझे अपने प्यार और करुणा से भर दिया है, खास तौर पर उनके लिये जो भटके हुए हैं। यह परमेश्वर का ‘अगापे’ प्रेम है जो मुझे निरंतर उनके लिये प्रार्थना करने के लिये और सुसमाचार बताने के लिये प्रेरित करता है। मैं इस बात की डींग नहीं मार सकता कि मैं सबसे प्रेम करता हूँ। मैं कोशिश करता हूँ और कई बार इसमें विफल भी हो जाता हूँ। फिर भी जब मैं अपने आपको परमेश्वर के हाथों में सौंप देता हूँ तो वो मुझ में रहकर सब से प्यार करता है।

प्रभु यीशु को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता जान लेने के बाद से मैं एक बदला हुआ इंसान हो गया हूँ। मैं अपने परिवार से और ज्यादा प्यार करने लगा हूँ और उनकी ओर ज्यादा ज़िम्मेदार हो गया हूँ। मेरे भाई-बहन ने मुझमें यह अंतर देखा है, और शायद यह ही मेरे परिवार को मसीह से प्रभावित करने का कारण रहा हो। परमेश्वर ने सारी कड़वाहट को मेरे जीवन से निकालकर अपनी मिठास मुझ में भर दी।

बाइबल प्रेम के बारे में बहुत कुछ सिखाती है –

“प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम ईर्ष्या नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं...”

[1 कुरिन्थियों 13:4-8]

“पलटा न लेना, और न अपने जाति भाइयों से बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखना; मैं यहोवा (परमेश्वर) हूँ।”

[लैव्यव्यवस्था 19:18]

“तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। परंतु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो।”

[मत्ती 5:43, 44]

“उस ने उत्तर दिया, कि तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख; और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।”

[लूका 10:27]

हमें ऐसा लग सकता है कि ये बातें कहना आसान है पर करना मुश्किल - और यह बात सही भी है जब हम अपनी सामर्थ में ऐसा करने की कोशिश करते हैं। परंतु जब हम अपने आपको परमेश्वर की आधीनता में ऐसा करते हैं तो परमेश्वर कृपा करता है और निरंतर सिखाता है।

वो हमसे यह अपेक्षा रखता है कि हम अपनी ओर से नम्रता और दीनता का व्यवहार करते हुए उसके जैसा स्वभाव बनाएँ (गलतियों 2:5), और परमेश्वर के उसी स्वरूप में परिवर्तित होते चले जाएँ जैसा उसने शुरू में हमें आदम और हव्वा करके (उत्पत्ति 1:27) बनाया।

मैं बाइबल में सिखाया गया सिद्ध प्रेम नहीं कर पाता हूँ। मैं अभी भी सीख रहा हूँ। पर मेरा विश्वास है कि जो भला काम परमेश्वर ने शुरू किया है वो उसे खत्म भी करेगा।

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विचारों में बदलाव (नकारात्मक से सकारात्मक)


मेरी सोच बदल गई है। परमेश्वर ने अपने वचन से सिखाया कि हर वो विचार जो परमेश्वर की ओर से नहीं है उन्हें बंदी कर हम प्रभु के चरणों में ले आएँ ताकि वो हम पर प्रभुता न कर सके, क्योंकि ऐसे विचार जो परमेश्वर की ओर से नहीं, वह शैतान की ओर से हैं।

प्रभु यीशु को जानने से पहले जब भी किसी युवक को मैं देखता तो मेरे मन में लड़ने के विचार उठते थे। मैं सोचता कि यदि में इस व्यक्ति से लड़ूँ तो इसे पीट सकूँगा या ये मुझे पछाड़ देगा। मैं युक्तियाँ बनाने लगता था कि मैं इसे इस तरीके से पटकूँगा या इसे ऐसे हरा सकूँगा। मेरा अपने ही विचारों पर कोई नियंत्रण नहीं था या शायद मेरी विचारधारा ही ऐसी हो चली थी। मेरे विचार प्रेम के या भाईचारे के नहीं परन्तु लड़ाई के थे।

जब मैंने प्रभु यीशु को जाना तो मैंने सीखा कि वो तो हमें अपना दूसरा गाल उसकी ओर फेरना सिखाते हैं जिसनें हमारे एक गाल पर तमाचा मारा हो, और उनके लिये प्रार्थना करना सिखाते हैं जो हमें सताते हों। प्रभु कहते हैं कि बदला लेना हमारा नहीं उनका काम हैं, हमें तो प्रेम में सब सह लेना है।

परमेश्वर की लालसा इसी बात की रहती है कि वो आत्माओं को नर्क से बचाएँ, और उसने मुझ में भी वो इच्छा पैदा कर दी है। आज जब मैं किसी को देखता हूँ तो उसके प्रति द्वेष या लड़ाई की भावना पैदा नहीं होती बल्कि मुझे उसमें एक भटकी और खोई हुई आत्मा दिखाई पड़ती है जो शायद नर्क की ओर जा रही हो। मेरा हृदय द्रवित हो जाता है और मैं अपने आपको उनके प्रति जिम्मेदार महसूस करता हूँ।

पहले वो समय था जब मेरे पास कोई आशा नहीं थी और मैं हर बात में नकारात्मक पहलू देखा करता था। अपनी जीवन नैया मैं खुद ही खेने की कोशिश करता रहता था और सच बताऊं तो बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी। यह आपका अनुभव भी हो सकता है। जीवन में कई बार हम ऐसी परिस्थिति में पड़ जाते हैं कि हमें हाथ को हाथ नहीं सूझ पड़ता है। हमें पता नहीं चलता कि इसका परिणाम क्या होगा और हमारे मन में स्वाभाविक तौर पर नकारात्मक विचार आने शुरू हो जाते हैं।

जबसे मैंने प्रभु यीशु को पा लिया है तबसे मेरी जीवन नैया के खेवनहार वो ही है और मैं आराम से रह सकता हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि उन्हें सब मालूम है। वो सब कुछ सही करते हैं। अपने जीवन की उन कठिन परिस्थितियों को, जिनमें पहले हम हारा हुआ महसूस करते थे, उनमें परमेश्वर हमें विजय दिलाता है और उन्हें हमारे आधीनता में ले आता है।

बाइबल बताती है कि उसने हमें स्वर्ग कि कु़ञ्जियाँ दे दी है ताकि जो भी हम धरती पर बाँधें वो स्वर्ग में बंध जाये और जो भी हम धरती पर खोलें वो स्वर्ग में खुल जाए। हमारे मुख से निकलने वाले शब्द ही वो कुंजी है। हमारे मुख से निकले हर शब्द का बड़ा महत्व है। हमारे सकारात्मक शब्द परमेश्वर इस्तेमाल करता है कि हमें आशीष दे और नकारात्मक शब्द शैतान इस्तेमाल करता है कि हमें नाश करे। यह समझने के तुरंत बाद मैंने अपने नकारात्मक शब्दों के लिये परमेश्वर से क्षमा माँगी और उनके प्रभाव को यीशु के पवित्र नाम में खत्म किया। अब मैं सकारात्मक बोता हूँ और सकारात्मक काटता हूँ।

मेरे विचार अब सकारात्मक हैं। किसी परिस्थिति में मैं अब नकारात्मक बातें नहीं ढूंढता बल्कि हर बात में परमेश्वर को खोजता हूँ, और पाता भी हूँ इसलिये मेरे पास हमेंशा आशा रहती है और मैं हरेक बात में उसका धन्यवाद कर पाता हूँ। मेरे जीवन में यह परिवर्तन प्रभु की दया और सामर्थ से हुआ है, मैं उनका आभारी हूँ।


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मौत का भय नहीं रहा


मौत का भय अब मुझमें नहीं है।

पौलुस फिलिप्पियों 1:21 में यह बात कहता है कि उसके लिये जीना मसीह है और मरना लाभ। हर बात में वो परमेश्वर को अपने साथ महसूस करता था और इसीलिये न तो उसे अपने शारीरिक जीवन से कुछ विशेष प्रेम था और न मृत्यु से कुछ भय।

इस दुनिया में ज़्यादातर लोग मौत से भय खाते हैं। इसके पीछे मुख्य कारण ये है कि उन्हें यह नहीं मालूम कि मरने के बाद हमारा क्या होता है। हमारी आत्मा कहाँ जाती है? भविष्य कि अनिश्चितता ही भय को लाती है।

मुझे मालूम है कि मृत्यु के बाद मेरा क्या होगा। मुझे मृत्यु से कोई भय नहीं है। युहन्ना 14:3 के अनुसार यीशु का वायदा मेरे साथ है –

“और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हे अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूं वहाँ तुम भी रहो।”

दूसरा कारक जिसके कारण लोग मृत्यु से डरते हैं वो है – मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरे माता-पिता। प्रभु यीशु में मेरे पास एक आशा है क्योंकि वो मेरी सुधि लेते हैं। मैं जानता हूँ कि जो परमेश्वर मेरी ज़रूरतें पूरा करता है वो मेरे परिवार की भी ज़रूरतें पूरी कर सकता है।

प्रभु यीशु ने मत्ती 6:26, 27 में कहा है -

“आकाश के पक्षियों को देखो। वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तौभी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन को खिलाता है; क्या तुम उन से अधिक मूल्य नहीं रखते। तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?”

और मत्ती 6:31, 32 में –

“इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएँगे, या क्या पीएँगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारी स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हे ये सब वस्तुएँ चाहिए।”

मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूँ और प्रतिदिन परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ। मैं मृत्यु को किसी भी दिन देखने में नहीं डरता क्योंकि फिर मैं प्रभु यीशु के साथ स्वर्ग में रहूँगा।

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परमेश्वर के साथ सनातन जीवन की आशा


बाइबल बताती है कि वो जो परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह में विश्वास करते हैं वे परमेश्वर की लेपालक (गोद ली हुई) संतान है। उनका नाम जीवन की किताब में लिखा है और उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं है बल्कि वे न्याय के दिन खरे पाये जाएँगे।

प्रभु के इस वचन पर विश्वास करने के मेरे पास ठोस कारण हैं। यीशु मसीह के बारे में की गई करीब 332 भविष्यवाणियों में से 99 प्रतिशत भविष्यवाणियाँ बिल्कुल ठीक ठीक पूरी हुई हैं, और जो बची हैं वो सिर्फ उनके दूसरे आगमन के विषय में हैं। मैं जानता हूँ कि जब पहले आगमन कि भविष्यवाणियाँ शत-प्रतिशत पूरी हुई हैं तो दूसरे आगमन के विषय में भी पूरी होंगी। और वैसे भी यदि मेरा जीवन परिवर्तन सत्य है तो मैं क्योंकर संदेह करूँ।

यीशु मसीह फिर से आने वाले हैं ताकि अपनी कलीसिया (चर्च) को अपने साथ स्वर्ग में ले जाएँ जहाँ उसने सब विश्वासियों के लिये स्थान तैयार किये हैं। वहाँ हम उसके सारे स्वर्गदूतों, सारी जातियों के विश्वासियों, देश देश के लोगों और मसीही संतों के साथ उसकी आराधना करेंगे और चारों ओर उसकी महिमा का प्रकाश होगा।

मुझे आशा है कि मैं परमेश्वर को देखूँगा और उसके साथ उसके राज्य में रहूँगा। परमेश्वर के पवित्र स्वर्ग का स्पष्ट चित्रण बाइबल की आखिरी पुस्तक ‘प्रकाशितवाक्य’ में दिया गया है।

यह एक आत्मिक आशीष है जो अदृश्य है जिसे हम अपनी शारीरिक आँखों से नहीं देख सकते पर यह हमें दी गई है ताकि प्रभु के दूसरे आगमन में इसे पूरा होते देखें। जो विश्वास करेंगे वो इसके भागीदार होंगे बाकि पीछे छूट जाएँगे।

ऐसा क्या है जो मुझे उस महिमा की आशा रखने से रोक सके?


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सफलता और समृद्धि

बाइबल की एक पुस्तक भजनसंहिता के पहले अध्याय में सफल पुरूष की एक परिभाषा दी गई है –

“क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियों के मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालों की मण्डली में बैठता है। परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”

इसे मैं ऐसे भी कह सकता हूँ कि वह व्यक्ति (स्त्री अथवा पुरुष) जो दुष्टों की मण्डली में न तो उठता बैठता है और न उनके विचारों तथा योजनाओं में किसी प्रकार भागी होता है बल्कि वह निरंतर परमेश्वर का भय मानते हुए दिन रात उसके वचन पर मनन कर पाप से परे आज्ञाकारिता का जीवन बिताता है, और अपने जीवन में परमेश्वर को सबसे मुख्य स्थान देता है वह व्यक्ति अपने हरेक काम में सफल होता है।

मैंने जब उपरोक्त वचन का अध्ययन किया और इसे समझने के बाद इसका पालन करने लगा तो परमेश्वर ने मुझे अपार सफलता दी है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि मैं एक सन्त बन गया हूँ या पापरहित हो गया हूँ और न ही यह कि मैं दुनिया का सबसे सफ़ल व्यक्ति हूँ। बल्कि मैं यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि मैंने अपनी सारी बुद्धि, बल तथा ह्रदय से परमेश्वर से प्रेम किया और उसके वचन को महत्व दिया, और ऐसा जीवन जीने का सतक प्रयास किया जैसा परमेश्वर चाहता है तो परमेश्वर ने मेरी मदद की। प्रभु यीशु ने असफलताओं को मेरे जीवन से गायब कर दिया है। जैसा मैंने पहले कई गवाहियों में बताया है कि हर परिस्थिति को ठीक से संभालने में परमेश्वर ने मेरी बड़ी सहायता की है। पवित्र आत्मा मेरी पढ़ाई से लेकर नौकरी तक और दैनिक जीवन से लेकर सामाजिक बातों में निरंतर मेरी अगुवाई करता रहा है।

ऐसा नहीं है कि मैं बहुत धनी हो गया हूँ पर आज मेरे पास परमेश्वर की दी हुई वो सब भौतिक चीजें हैं जो इस दुनिया में जीने के लिये हमें आवश्यक हैं। जो भी मेरे चीजें मेरे पास हैं उनके लिये मैं परमेश्वर का धन्यवाद कर उनको प्रयोग करता रहता हूँ। वे मेरे लिये काम की तो हैं पर महत्वपूर्ण नहीं है। मैं उनमें घमण्ड नहीं करता बल्कि अपने परमेश्वर में घमण्ड करता हूँ जो मुझे वो सब भली वस्तुएँ देता है। मैं अपने परमेश्वर से निरंतर प्रेम करता रहूँगा चाहे इस दुनिया की वस्तुएँ मेरे पास रहे या न रहे।

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परमेश्वर से मित्रता


परमेश्वर की कृपादृष्टि निरंतर मुझ पर और मेरे परिवार पर बनी रही है। यह सच में एक आत्मिक आशीष है जिसके कारण सारी भौतिक और शारीरिक आशीषें भी मेरे जीवन में आई हैं।

परमेश्वर हमारा मित्र बना है, और सच कहूँ तो वो मेरा सबसे प्यारा दोस्त है। वो मेरी सब बातें सह लेता है, कभी शिकायत नहीं करता, मेरी गलतियों को माफ करता है और अपना साथ मुझे देता है। मैं जब मुश्किल बात में फँस जाता हूँ तो वो मेरी सहायता करता है। वो मुझसे रोज मिलता है और बहुत बातें करना चाहता है।

परमेश्वर से मित्रता करना मुश्किल नहीं है। हमें सिर्फ इतना करने भर की ज़रूरत है कि हम उसे जानें, उसकी मित्रता का प्रस्ताव स्वीकार करें और हर दिन उसके साथ संगति करें।

मैं जानता हूँ कि हमारे ऐसा करने पर वो हमारे अंदर रहने लगता है। वो चाहता है कि हम अपने हरेक चुनाव में और हरेक निर्णय में उसको सम्मिलित करें। वो चाहता है कि हम प्रार्थना में उसके पास जाएँ और उससे परामर्श लें। उसकी इच्छा रहती है कि हम उसको अपने जीवन के हर क्षण में प्राथमिकता दें और उसको पहचानें।

यदि हम उसको अपने जीवन का एक अभिन्न अंग बना लें तो हम उसकी मित्रता और उसके अनुग्रह का अहसास कर सकते हैं।


परमेश्वर से मित्रता की गवाही

शारजाह आने के बाद हमारे पास कोई कम्प्यूटर नहीं था जिससे हम इंटरनेट पर भारत में अपने परिजनों से चैट कर सकें। अतः हम एक कम्प्यूटर खरीदना चाहते थे। हम प्रार्थना करने लगे। पैसा हमारी प्रार्थना का विषय नहीं था क्योंकि हमारे पास आवश्यक रूपये थे। हम प्रभु से राय लेना चाहते थे कि हम कैसा कम्प्यूटर खरीदें। यह बात उन लोगों को हास्यास्पद लग सकती है जो परमेश्वर को जीवित या अपना मित्र नहीं समझते।

अन्ततः कई दिनों की प्रार्थना के बाद हमें विश्वास हो गया कि परमेश्वर हमें लैपटॉप खरीदने देना चाहता था। हम पहला मौका मिलते ही जाकर एक लैपटॉप खरीद कर ले आये।

लैपटॉप आने के बाद हमें एक माउस, हैडफोन, इंटरनेट तार तथा वैबकैम की आवश्यकता थी। यह सब चीजें कुल मिलाकर 100 दिरहम (अमीराती मुद्रा 1 दिरहम = 11+ भारतीय रुपया) में आनी थीं।

एक शाम को शारजाह के सिटी सेंटर में जाकर हमने एक बड़ी दुकान में सब सामान चुन लिया और पैसे चुकाने काउंटर पर पहुँचे। वहाँ आने पर ही हमें पता चला कि जिस हैडफोन को हम 36 दिरहम का समझ कर ले आये थे वो असल में 52 दिरहम का था। शायद किसी ने उसे गलत जगह पर रख दिया होगा यह सोचकर हम फिर भी उसे खरीद लाए क्योंकि वो हमें पसंद आ गया था। हमने अपने बजट से ज्यादा मूल्य चुकाया।

घर पहुँचने के बाद मैंने सबसे पहले माउस का पैकेट खोला। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि पैकेट पर USB लिखा था जबकि यह माउस PS2 तरह का था जो कि मेरे कम्प्यूटर में काम नहीं आ सकता था। इसके बाद मैंने बड़ी आशाओं के साथ वैबकैम का पैकेट खोला तो पाया कि इसकी ड्राइवर सीडी टूटी हुई थी। आखिर में इंटरनेट केबल को इस्तेमाल करने की कोशिश की तो इसमें भी मुझे असफलता ही मिली। ये केबल इंटरनेट के लिये नहीं थी।

इस प्रकार हम उनमें से कोई भी वस्तु इस्तेमाल नहीं कर सके।

हम इस बारे में विचार करने लगे कि ऐसा क्यों हुआ। हम दोनों (प्रेरणा और मैं) आखिर एक निष्कर्ष पर पहुँचे कि हमने यीशु मसीह से इस बाबत कोई बात नहीं की। जब हम 5000 दिरहम खर्च करने जा रहे थे तो हम निरंतर प्रार्थना कर रहे थे परंतु जब 100-150 दिरहम खर्च करने की बात आई तो हम अपने परममित्र से सलाह लेना भूल गये। यह हमें छोटी बात लग रही थी पर प्रभु ने सिखाया कि यह छोटी बात नहीं थी।

हमने प्रभु से माफी माँगी और अपनी गलती स्वीकार की। इसके बाद हमने गिदौन की तरह एक बड़ी अनोखी बात प्रभु से कही। हमने कहा कि यदि प्रभु ने हमें माफ कर दिया तो हमें इन चीजों का पैसा वापस दिला दें। अनोखी इसलिये क्योंकि यह दुकान इस बात के लिये प्रसिद्ध है कि इसमें वे पैसा वापस नहीं देते बल्कि एक वाउचर देते हैं जिससे ग्राहक उसी दुकान में अन्य चीजों की खरीददारी कर सकें।

इस प्रार्थना के बाद हम उस दुकान के शिकायत काउंटर पर पहुँचे। उन्होंने अपने नियमों के अनुसार हमें वाउचर देने की बात कही, और हमें प्रतीक्षा करने के लिये कहा। कुछ समय के बाद उनके मुख्य क्लर्क के न आने पर उन्होंने हमें हमारा पैसा वापस कर दिया। यह सामान्य बात नहीं थी पर हम जानते थे कि ये क्यों हुआ।

हमें मालूम हो गया कि हमारे मित्र ने हमें क्षमा कर दिया था।

हमने इस बात से सीखा कि प्रभु यीशु हमारे उनके साथ संबंध को कितना महत्व देते थे। हम अब निरंतर प्रभु के साथ रहना पसंद करते हैं और उनको अपने जीवन में प्राथमिक स्थान देते हैं और उनका विशेष साथ निरंतर हमारे संग बना रहता है।


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परमेश्वर का विशेष साथ

परमेश्वर के विशेष साथ को हम नीचे दिये गये उदाहरण से समझ सकते हैं।

एक ऐसी सड़क की कल्पना कीजिये जिसमें बाकी सब लोग तो भीड़ भरी लेन में धीरे धीरे रेंगते हुए से चल रहे हों पर उसी समय कुछ विशेष लोगों के लिये एक अत्यधिक तेज रफ्तार वाली लेन निर्धारित हो जो बिना किसी परेशानी के 150 किलोमीटर प्रतिघंटा या ज्यादा की रफ्तार से जा रहे हों। यह अजीब लग सकता है और शायद किसी को बुरा भी लगे परन्तु परमेश्वर का अनुग्रह जिसपर हो वो बिना रुकावट के निरंतर अपनी जीवन यात्रा में सफल और संतुष्ट जीवन का आनन्द उठाते हैं। परमेश्वर न तो किसी को बाध्य करता है कि धीमी लेन में चलें और न ही किसी भी कारण से किसी को उससे विशेषाधिकार पाने से प्रतिबंधित किया है कि तेज लेन में न चल सकें। जो इस विशेषाधिकार से वंचित हैं यह परमेश्वर की नहीं अपितु स्वयं उनकी ही गलती है। परमेश्वर पक्षपाती नहीं है।

उपरोक्त उदाहरण से मैं प्रभु यीशु के संकरे और चौड़े मार्ग के बारे में दी गई शिक्षा को तोड़ने मरोड़ने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। उस पद में प्रभु ने जो शिक्षा दी है वह इस प्रकार है कि संकरा मार्ग परमेश्वर की ओर लेकर जाता है जिसपर चलना मुश्किल है क्योंकि यहाँ अपने शरीर को मारते कूटते हुए हमें पवित्र जीवन जीवन जीना होता है; पर उस पर भीड़ कम है। इसके विपरीत नर्क की ओर जाने वाला मार्ग बहुत चौड़ा है और इस पर चलना आसान है, क्योंकि इसमें पाप और शैतान के दास रहते हुए हम स्वच्छंदता का जीवन बिताते रहते हैं, परन्तु इस पर भीड़ बहुत है और लोग एक दूसरे को दबाते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।

हम परमेश्वर के इस विशेष साथ को कैसे पा सकते हैं, यह समझने के लिये फिर से हमें एक दृष्टांत को देखना होगा।

विचार कीजिये कि आप एक बहुत महंगा उपकरण खरीद कर लाये जिसमें सैंकड़ों बिजली के तार लगाने की जगह है और आप इसे संगठित करने बैठे हैं। हर अच्छी कम्पनी के उपकरण की तरह इसके साथ भी एक निर्देश पुस्तिका आई है जो हरेक तार को कहाँ जोड़ना है इस विषय में निर्देश देती है। यदि आप उस निर्देश-पुस्तिका के आधार पर सब कुछ जोड़ें तो ज़रूर अपने उपकरण को चलने योग्य बना लेंगे और उसका भरपूर इस्तेमाल कर सकेंगे। परन्तु यदि आप इस पुस्तिका को एक तरफ रखकर अपनी समझ के अनुसार सब तारों को जोड़ने का प्रयास करेंगे तो संभव है कि आप इसमें कोई ऐसी गलती कर बैठें जिससे सारा उपकरण ही जलकर खाक हो जाए।

ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन भी काफी जटिल है और बहुत सी पेचीदा परिस्थितियाँ हमारे सामने रोज आती हैं जिनका हमें सही निर्णय लेना ज़रूरी है अन्यथा हम बहुत बड़ी परेशानी में फंस सकते हैं (पाप और मृत्यु के जाल में फंसे भी हुए हैं)। हमारे निर्माता ने हमारे जीवन के लिये भी एक निर्देश पुस्तिका दी है जिसका नाम बाइबल है। यदि अपने जीवन को हम अपने तरीके से चलाते हैं तो बहुत बार हानि उठाते हैं परंतु यदि हम, हमें दी गई निर्देश-पुस्तिका के अनुसार जीवन बिताएँ तो परमेश्वर का विशेष साथ हमें निरंतर मिलता है।

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परमेश्वर ने अपने वचन में लिखा हरेक वायदा मेरे जीवन में पूरा किया है। मैं कई बार विश्वासहीन और अयोग्य बन गया पर वो मुझसे निरंतर प्रेम करता रहा।

आपके लिये भी ऐसा ही करने के लिये वो तत्पर है। आप अपने पुराने सारे पूर्वाग्रहों को आज छोड़ दें और विश्वास करें कि वो परमेश्वर का पुत्र मसीह है जो आपके पापों की कीमत चुकाने इस धरती पर इंसान बनकर आया, आपके खातिर मारा गया, गाड़ा गया और फिर जी उठा और जीवित स्वर्ग में उठा लिया गया। उसको अपने जीवन में स्थान दें और उसकी अगुवाई में जीवन व्यतीत करें।

चाहे आप पहले से विश्वास करते रहे हों या आपने अभी अभी प्रभु यीशु को अपनाने का निर्णय लिया हो, संभव है कि अब तक आप भरपूर जीवन खो रहे हों, पर आज और अभी से ही आप इसे पा सकते हैं। यदि आप परमेश्वर के साथ एक निर्णय करना चाहते हैं तो मेरे साथ प्रार्थना करें :

“प्रिय प्रभु यीशु, मैं सच में आपका आभारी हूँ कि आपने मुझे बताया है कि आप मुझसे प्रेम करते हैं। स्वामी, आपने अपने वचन में बहुत सी आशीषों का वर्णन किया है और मैं उनको पाना चाहता हूँ। मैं जान गया हूँ कि मैं पापी हूँ और आप पवित्र परमेश्वर हैं। मैं अपने पापी जीवन से पछताता हूँ और अपने पापों से मन फिराता हूँ। मुझे क्षमा कर दीजिए। मेरे जीवन में आइये और अपना पवित्र आत्मा मुझे दीजिए ताकि आज के बाद का जीवन में आपका आज्ञाकारी शिष्य बनकर जी सकूँ। आमीन।”