सोमवार, 28 जुलाई 2008

अध्याय 2 ::: यह पुस्तक क्यों

“कुछ लोग ऐसा मानते हैं और कहते भी हैं कि ईश्वर, नर्क तथा उद्धार इत्यादि कमज़ोर लोगों द्वारा गढ़े हुए विचार हैं जो जीवन की कठिन परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत नहीं रखते और इन बातों का सहारा लेते हैं। पर मेरे विचार में, हम में से हरेक को परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना ही चाहिए, चाहे हम किसी भी धर्म के अवलम्बी क्यों न हों।”

क्या आपको आश्चर्य हो रहा है कि जब इतनी सारी क़िताबें, शायद लाखों, पहले ही ईश्वर तथा विश्वास के विषय में लिखी जा चुकी हैं तो फ़िर एक और क़िताब की क्या ज़रूरत है?

मेरे पास इस बात का उत्तर है। किताब से बढ़कर, यह मेरे जीवन में घटी घटनाओं का लिखित वर्णन है जो मुझे हरदम याद दिलाएगी कि परमेश्वर ने मेरे लिए क्या किया है। मेरे इन अनुभवों से न सिर्फ मैं बल्कि अन्य लोग भी परमेश्वर की सामर्थ को देख सकते हैं ताकि उसमें विश्वास कर सकें।

कुछ लोग ईश्वर को किसी के अनुभव की दृष्टि से समझना पसंद नहीं करते क्योंकि किसी के भी अनुभव को नकारना या उसकी जाँच करना, असम्भव नहीं भी, तो मुश्किल ज़रूर है। लेकिन मेरे सारे अनुसंधान तथा खोज से मुझे यह मालूम हुआ कि हम ईश्वर को समझ (सीख) नहीं सकते पर उसके प्रेम का अनुभव कर सकते हैं और उसकी सर्वव्याप्त उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं।

इसका मतलब यह नहीं है की वो है ही नहीं, या काल्पनिक है। नहीं ऐसा नहीं है, परंतु उसके स्वरूप को समझाना कठिन है। इसे सिर्फ़ विश्वास से समझा जा सकता है।

यदि आप उन लोगों में से एक हैं जो अनुभव से नहीं बल्कि सिद्धांत और ज्ञान से उसे जानना चाहते हैं, तो शायद यह क़िताब आपके लिए ना हो; फ़िर भी मैं आपसे आग्रह करूँगा कि इसे आप पूरा पढें; इससे आपको पता चलेगा, कि परमेश्वर अपने लोगों के जीवन में क्या क्या करता है और कैसे वो जीवन परिवर्तन करता है। क्या पता, कल को यह आपका भी अनुभव साबित हो।



***

परमेश्वर ने मुझे प्रेरणा दी की मैं अपनी गवाही को लिखूँ ताकि ऐसा न हो की मैं खास और ज़रूरी बातों को भूल जाऊं। तब मैंने एक पन्ने की गवाही लिखकर इंटरनेट पर डाली। उसको पढ़ने के बाद एक बहन ने कहा कि सच में प्रभु के मेरे जीवन में किए बड़े कामों की गवाही को पढ़कर उनका उत्साहवर्धन हुआ था और उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं इसे और विस्तार से लिखूँ। उस बहन के कहने पर मैंने इसे 3 पन्नों में लिखा। उसके बाद जब मैं अपनी पत्नी सहित गिडियन्स सेवा का भाग बना और उन्हें मालूम हुआ कि जो पहली बाइबल मुझे दी गई थी वो एक गिडियन बाइबल थी तो संस्था के अगुवा लोगों ने मुझे इसे और विस्तृत रूप से लिखने को कहा ताकि सेवकों को उत्साहित किया जा सके। मैं इस बात का जीवंत उदाहरण था कि जब किसी को परमेश्वर का वचन दिया जाता है तो उससे कैसा अनूठा काम होता है। मैंने अपनी गवाही को और विस्तृत रूप में लिखा।

इसके बाद मेरा ऐसा कोई विचार नहीं था कि मैं इसे एक क़िताब के रूप में लिखूँ।



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कुछ दिनों पहले मैंने एक कहानी सुनी जिसने मुझे इस क़िताब (मेरी विस्तृत ग़वाही) को लिखने के लिए प्रेरित किय़ा। इसके पीछे परमेश्वर ने जो उद्देश्य मुझे दिया है वो ये है कि वो सभी लोग जो उसी धर्म में पैदा हुए हैं, जिसमें मैं भी हुआ और जो अपने सृष्टिकर्ता परमेश्वर से दूर होकर अंधकार में भटकते हुए ईश्वर की खोज कर रहे हैं पर उससे कोसों दूर हैं (परंतु वो उनके इतना नज़दीक है, फ़िर भी वे उसे देख नहीं सकते), उसको जान सकें और उसे पा सकें।

कहानी जो मैंने सुनी, वो एक जवान लड़के संजय (परिवर्तित नाम – असली नाम ब्रायन) के विषय में थी। वह 17 वर्ष की उम्र में एक सड़क दु्र्घटना में मारा गया। इसे एक सत्य घटना भी माना जाता रहा है। जोशुआ हेरिस द्वारा लिखी गई पुस्तक (आई किस्ड डेटिंग गुडबाय) में एक कहानी में संजय अपनी असामयिक मृत्यु से पहले एक लेख लिखता है।

उस लेख में संजय ने लिखा कि उसने एक स्वप्न देखा जिसमें एक विशाल कमरा था। उसकी दीवारों पर चारों तरफ़ दराज़ें लगी थीं, जैसे की बैंक के लॉकर में या पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में, जहां पुस्तकालय में उपलब्ध सभी क़िताबों की सूची, लेखक तथा क़िताब के नाम से लगी होती है। उस कमरे में इन फ़ाइलों का जैसे अंबार सा लगा था।

जैसे वो पास गया, पहली दराज़ जो उसने देखी, उसपर लिखा था – ‘लड़कियां जिन्हें मैं चाहता था‘। उसने उसे खोला और सूची-पत्रों (कार्ड) को पढ़ने लगा। उसे यह देखकर बड़ा झटका लगा कि वो उन नामों को जानता था। वो जल्दी जल्दी सभी दराज़ों को खोल खोल के देखने लगा। उस निर्जीव कमरे में उसके जीवन की सभी छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बातों का पूरा कच्चा चिट्ठा मौजूद था; यहां तक कि उन बातों का भी ज़िक्र था जिन्हें वो कभी का भुला चुका था।

एक एक कर खोल कर देखते समय कुछ अच्छी तो कुछ बुरी बातें, कुछ गौरवान्वित करने वाली तो कुछ शर्मिंदा करने वाली बातें सामने आने लगीं। अपने लेख में संजय लिखता है कि कुछ बातें तो उसे इतना शर्मिन्दा कर रहीं थीं कि वो इधर उधर देख लेता था कि कोई उसे देख तो नहीं रहा।

वो आगे लिखता है - ‘दोस्त’ नामक दराज़ में जो फ़ाइलें थीं उनमें से एक थी – “दोस्त: जिन्हें मैंने धोखा दिया”। उस फ़ाइल के सभी पन्ने सच्चाई से मेरी दास्तां बयान कर रहे थे।

उसने आगे लिखा है की सभी पन्नों पर अलग अलग शीर्षक (टाइटल) लिखे थे। उसके आश्चर्य का कहीं ठिकाना नहीं था क्योंकि उसके जीवन की हरेक बात इन फ़ाइलों में लिखीं थी। हरेक पन्ने पर अंत में उसका नाम तथा हस्ताक्षर अंकित थे।


इस तरह उसके जीवन के हर क्षेत्र के शीर्षक से फ़ाइलें तथा पन्ने (सूची-पत्र) वहां थे – क़िताबें जो मैंने पढ़ीं, झूठ जो मैंने बोले, सहायता जो मैंने की, चुटकुले जिनपर मैं हँसा इत्यादि।

अन्ततः उसको एक फ़ाइल मिली – ‘हवसपूर्ण विचार’ ।

वो लिखता है कि एक सिहरन उसके सारे शरीर में दौड़ गई। यह फ़ाइल कुछ ज्यादा ही मोटी थी। उसने थोड़ा सा फ़ाइल को बाहर निकालकर पढ़ने की कोशिश की लेकिन उसमें दी गई बारीक जानकारियों को देखकर वो हक्का बक्का रह गया। वो सोच रहा था कि कौन है जो उसके बारे में इतना कुछ जानता है।

वो आगे कहता है – “सिर्फ़ एक विचार मेरे मन में कौंध रहा था – कोई इस फ़ाइल को कभी ना देखे – यहाँ तक कि कोई भी कभी इस कमरे को न देखे, मुझे यह सब नष्ट करना है।”

पागलों की तरह वह उस फ़ाइल को फ़ाड़ने की कोशिश करने लगा। आश्चर्य की बात यह थी की वह एक भी पन्ना फ़ाड़ नहीं सका, वो पन्ने जैसे स्टील के बने थे। वो अपना सिर पकड़कर दीवार के सहारे खड़ा होकर सोचने लगा की इस घड़ी में वो क्या करे। उसने एक दीर्घ सांस ली – जैसे कह रहा हो “क्या मेरे बस में कुछ भी नहीं”। वह बहुत निराश हो चला था।

वो नीचे बैठ गया जैसे उसके घुटनों में जान न हो और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। उसे अपने आप पर शर्म आ रही थी। वो फ़ाइलें उसकी आंखों के सामने घूम रही थीं। बस यही विचार बार बार आ रहा था कि कोई कभी भी इस कमरे के बारे में ना जाने – हो सके तो इस कमरे को हमेंशा के लिए ताला लगाकर चाबी कहीं छुपा दे।

इतने में उसने देखा कि यीशु मसीह ने उस कमरे में प्रवेश किया और हरेक फ़ाइल को पढ़ने लगे। संजय आगे लिखता है कि उसने यीशु मसीह की आँखों में बहुत वेदना देखी – इतना दुखः जितना खुद उसे भी नहीं था। वो हरेक पन्ने पर संजय की जगह अपने हस्ताक्षर करने लगे।

प्रभु को हस्ताक्षर करते देख संजय बेतहाशा उन पन्नों को देखने लगा और प्रभु यीशु को हस्ताक्षर करने से रोकने लगा। वह बोल रहा था - नहीं, नहीं, आपका नाम वहां नहीं होना चाहिए। पर सारे पन्नों पर यीशु मसीह के हस्ताक्षर थे, पता नहीं प्रभु ने यह कैसे किया। वो हस्ताक्षर इतने गहरे थे कि संजय का नाम कहीं दिखता ही नहीं था। वे प्रभु यीशु के लहू से लिखे थे। प्रभु यीशु ने हरेक पन्ने पर, जो संजय के पापों के लेख थे, एक एक कर अपने हस्ताक्षर कर सारे पापों का ज़िम्मा अपने ऊपर ले लिया।

संजय पापमुक्त हो गया था क्योंकि यीशु ने उसके सारे पाप क्षमा कर दिए थे।


***

जब मैंने पहली बार इस कहानी को सुना था तो मेरी आँखों से आंसू निकल पड़े थे। इस कहानी ने मुझे इस क़िताब को लिखने के लिए प्रेरित किया क्योंकि मुझे यह अहसास हुआ कि यह सिर्फ़ संजय कि कहानी नहीं है बल्कि यह हम में से किसी की भी कहानी हो सकती है।

सोचिए. क्या यह आपकी कहानी नहीं हो सकती है?

ज़रा सोचिए, आपने अपने जीवन में क्या क्या किया है जो आप सबसे छुपाना चाहेंगे। आपकी असफ़लताएँ, आपकी गलतियां, वो सारे ग़लत विचार जो आपने अपने माता-पिता और भाई-बहन के बारे में किए। वो समय जब आपने अपने सबसे अच्छे मित्रों की आलोचना की, वो समय जब आपने किसी लड़के अथवा लड़की को व्यभिचार के लिए लुभाने की कोशिश की, आपके कामुकतापूर्ण विचार, वो पुस्तकें और कहानियां जो आपने पढ़ीं, वो चुनाव जो आपने किए, वो झूठ जो आपने बोले, वो लोग जिनको आपने सताया, यह सूची का़फी लम्बी हो सकती है।

यदि आप अपने आप से सत्य बोल सकते हैं तो आप जानेंगे कि जो मैंने कहा वो एक सच्चाई है। आप इस यात्रा में मुझपर आपकी अगुवाई करने के लिए विश्वास कर सकते हैं।



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विश्वास आत्मिक जीवन का आधार है, और जो ईश्वर को जानना चाहे, उसे इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि बाइबल परमेश्वर का वचन है जिसके द्वारा परमेश्वर अपने आपको मानवजाति पर प्रकट करना चाहता है। मैं कई तर्कों और सबूतों के आधार पर यह साबित करने की कोशिश कर सकता हूँ की बाइबल परमेश्वर का जीवित वचन है – परंतु फ़िर भी विश्वास के बिना आप इसे समझ नहीं सकते।

इतने पर भी यदि आप बाइबल पर विश्वास नहीं करते, तो भी एक बार को सोचिये – क्या हो यदि बाइबल ही एकमात्र सच्चाई हो। अग़र बाइबल ही परमसत्य है तो आप इसपर अविश्वास करके कहां जाएँगे? और यदि बाइबल में लिखी बातें सच हैं तो आप अपना अनंतकाल का जीवन कहां बिताएँगे।

बाइबल में सुसमाचारों1 में ऐसा लिखा है -

“कुछ ढका नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। इसलिए जो कुछ तुम ने अन्धेरे में कहा है, वह उजाले में सुना जाएगा; और जो तुम ने कोठरियों में कानों-कान कहा है, वह छत पर से प्रचार किया जाएगा।”

[लूका 12:2, 3]

1[मत्ती, मरकुस, लूका तथा युहन्ना रचित सभी सुसमाचार परमेश्वर के मानव रूप में मनुष्यजाति के पाप क्षमा करने के लिए एक उद्धारकर्ता के स्वरूप में आने की खुशखबरी है। यह मत्ती, मरकुस, लूका तथा युहन्ना नामक चेलों की नज़र से तथा पवित्र आत्मा की प्रेरणा से यीशु मसीह के आने की तथा उनके द्वारा किए गए पवित्र बलिदान का विवरण है जो हमें परमेश्वर के असीमित प्रेम तथा दया के बारे में बताते हैं]

संजय के स्वप्न को हम एक ईश्वरीय दृष्टांत के रूप में देख सकते हैं। हम में से हरेक को इस दुनिया को छोड़ने के बाद न्याय सिंहासन के सामने खड़ा होना पड़ेगा। क्या आप उस पवित्र परमेश्वर के सामने खड़े हो सकेंगे?

कदापि नहीं। जब तक आपके पापों का लेखा मिट ना जाए जैसे कि वो कभी थे ही नहीं, तब तक आप स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते और न ही परमेश्वर से नज़रें मिला सकते हैं।

यीशु मसीह इस पापमय दुनिया में इसलिये आए थे, ताकि क्रूस पर अपने प्राणों का बलिदान कर हमें पापमुक्त करें। प्रभु यीशु ने अपना रक्त बहाकर हमारे पापों को धोकर साफ़ किया है और हमें मृत्यु के बन्धनों से मुक्त किया हैं। इसे हम विश्वास द्वारा अनुभव कर सकते हैं।

मैं यह खुशखबरी सबको सुनाना चाहता हूँ और यह पुस्तक इस दिशा में मेरा एक कदम है। आप इस बात निम्न दृष्टांत के द्वारा समझ सकते हैं।

कल्पना कीजिए कि मैं एक गरीब आदमी था और मुझे एक ऐसी बीमारी हो गई जिसका इलाज मेरे शहर में उपलब्ध नहीं था। मुझे बताया गया कि दूसरे देश में एक चिकित्सक (डॉक्टर) था जो मेरी बीमारी का इलाज कर सकता था। तो क्या मैं उस चिकित्सक से सिर्फ इसलिये इलाज नहीं करवाता क्योंकि वो मेरे देश में नहीं रहता? मैं तो तैयार था मगर मेरे पास इतने पैसे नहीं थे। फ़िर भी मैंने उससे बात की और उसने अपने खर्चे पर आकर मेरे घर में मेरा इलाज किया। मुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। वो मेरी परिस्थिति को समझता था और इसीलिए उसने मुझसे कुछ फ़ीस भी नहीं ली।

क्या ये मेरी कृतघ्नता नहीं होगी कि मैं अपने दिल की गहराई से उसका धन्यवाद ना करूँ?

क्या आप मुझे स्वार्थी नहीं कहेंगे यदि मैं अपने चारों और उन लोगों को देखूं जो उसी बीमारी से ग्रसित हैं जिसमें कभी मैं भी था, और फिर भी चुपचाप रहूं? क्या आप को यदि उस बीमारी से छुटकारा मिला होता और आप अपने परिजनों तथा मित्रजनों को उस बीमारी में दुखः पाते देखते, तो क्या आप उस डॉक्टर का पता उन सबको न बताते?

हम सब ‘पाप’ की गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं जो अन्ततः आत्मिक मृत्यु को लाती है जो कि कुछ और नहीं बल्कि हमेंशा के लिए ईश्वर से अलगाव और नर्क की आग में जलना है। प्रभु यीशु हमें इससे छुटकारा दिला सकते हैं। आप मेरी बात पर यक़ीन करें या न करें – परन्तु यही सच्चाई है।


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कुछ लोग ऐसा मानते हैं और कहते भी हैं कि ईश्वर, नर्क तथा उद्धार इत्यादि कमज़ोर लोगों द्वारा गढ़े हुए विचार हैं जो जीवन की कठिन परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत नहीं रखते और इन बातों का सहारा लेते हैं।

यदि ईश्वर को मैंने व्यक्तिगत रूप से अनुभव के द्वारा नहीं जाना होता तो मैं भी ऐसे ही लोगों में शामिल होता। लेकिन अपने जीवंत अनुभव के द्वारा मैं जानता हूँ कि परमेश्वर एक सच्चाई है, यीशु मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं, पवित्र आत्मा जीवित हैं जो हमें हर दिन जीने की सामर्थ देते हैं।

किसी का भी अविश्वास इस सच्चाई को बदल नहीं सकता।

यदि मैं कहूं कि मैं ‘कार’ नामक किसी वस्तु में विश्वास नहीं करता और इसी विश्वास (या कार में अविश्वास) के साथ यदि सड़क के बीचों-बीच चलता रहूँ तो सामने से तेज गति से आती कार से मैं अपने आप को बचा नहीं सकता और न ही उस दुर्घटना के परिणाम से।

मेरे विचार में, इंडोनेशिया में आए सूनामी, अमरीका में आए कतरीना तथा ओमान में आए गोनू समुद्री चक्रवातीय तूफ़ानों में सबसे ज़्यादा नुकसान उठाने वाले (यहाँ तक कि जान गवाँने वाले) लोग वो ही थे जिन्होनें या तो इन चेतावनियों पर यकीन नहीं किया या समय रहते सुरक्षित जगहों पर शरण नहीं ली। जो सबसे कम प्रभावित हुए वो वे लोग थे जिन्होनें चेतावनी पर विश्वास किया और सही समय पर सुरक्षित स्थानों पर चले गए।

ईश्वर, स्वर्ग, नर्क, पाप, मृत्यु तथा उद्धार सभी सच हैं – तथ्य हैं। हालांकि हम इन पर विश्वास करने या ना करने के लिए स्वतंत्र हैं परंतु जो विश्वास नहीं करते उनको ईश्वर के न्याय के दिन के लिए कोई आशा नहीं होती। परमेश्वर का वचन तथा उसके सेवक समय समय पर लोगों को इनके विषय में चेतावनी देते रहे हैं। कलीसिया (चर्च) पिछले 2000 वर्षों से इस दुनिया को पाप तथा मृत्यु के खतरे से आगाह करती रही है और मनुष्य के लिए परमेश्वर की आवश्यकता तथा उसके प्रेम के बारे में बताती रही है – क्या आप चेतावनी पर ध्यान देकर अपने आपको अनंतकाल के लिए सुरक्षित करना नहीं चाहेंगे?

परमेश्वर विद्यमान है। जो लोग इस बात को नहीं मानते (नास्तिक) वे या तो इस बात का विरोध करते हैं या वो सिर्फ़ सच्चाई से मुँह मोड़कर और अपनी आँखें बंद किए रहते हैं। यदि हम इस ब्रह्मांड की विशालता को देखें, सारे ग्रहों को, चाँद-सितारों को और धरती में के सारे सुव्यवस्थित (नियमशील) प्राकृतिक प्रकियाओं को देखें तो हम किसी भी तरह ईश्वर के अस्तित्व को नकार नहीं सकते। हम अवश्य ही यह जान लेंगे कि यह सब ज़रूर एक समझदार और अति विद्वान सृष्टिकर्ता के द्वारा रचा गया है जो जीवित है और जो कि इस प्रकृति का भाग कतई नहीं हो सकता। मेरे विचार में ईश्वर के ना होने का प्रमाण ढूंढना ज़्यादा मुश्किल है।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि हम में से हरेक को परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना ही चाहिए, चाहे हम किसी भी धर्म के अवलम्बी क्यों न हों। परमेश्वर धर्म की परवाह नहीं करता क्योंकि धर्म परमेश्वर के द्वारा नहीं अपितु मनुष्य के द्वारा ईश्वर के बारे में बनाये गये विचार तथा उसे पाने के तौरतरीके और रीतिरिवाज हैं। धर्म की तो भले ही नहीं पर परमेश्वर हमारी परवाह ज़रूर करता है क्योंकि उसे हम से प्रेम है।


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मैं इसी सच्चाई के बारे में सबको बताना चाहता हूँ, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति अथवा विचारधारा के मानने वाले क्यों न हों। उन सभी लोगों तक पहुंचने के लिए, जिन तक मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं पहुँच सकता, मैंने अपने अनुभव इस पुस्तक में लिखे हैं ताकि परमेश्वर की महिमा हो।

इस धरती पर जो जीवन हम बिताते हैं वो एक बहुत ही सीमित समय के लिए है जो कि अनंत जीवन की तुलना में कुछ भी नहीं है। यह इस प्रकार है जैसे कि यहाँ से लेकर चाँद अथवा सूरज तक खींची गई एक रेखा पर, जो कि अनंत जीवन के समान मानी जा सकती है, एक बिंदु भर अंकित कर दिया जाए तो वो इस धरती पर हमारे मानवीय जीवन का समय होगा। हम इस बिंदु जितने जीवन के लिए तो सब कुछ करते हैं पर अनंत जीवन के लिए कुछ नहीं। वह परमेश्वर जो हमारे शरीर में इतनी नसें लगा सकता है जो कि लम्बाई में जोड़ने पर धरती के तीन चक्कर काट सकती है तो क्या वो अपनी सामर्थ्य से हमारा उद्धार नहीं कर सकता? क्या उसे हमारे कर्मों की ज़रूरत है, पर धर्म में हम ऐसा ही करते हैं।

इस क़िताब को लिखने का उद्देश्य यह नहीं है कि मैं किसी धर्म विशेष या पंथ की आलोचना करूँ, परंतु ये कि परमेश्वर द्वारा मेरे जीवन में किए गए विस्मयकारक कामों का बयान करूँ। मैं आपको उत्साहित करना चाहता हूँ कि आप भी सच्चे ईश्वर में विश्वास करें, उसके प्रेम का अनुभव करें, उसकी सामर्थ में चलें और उसकी महिमा को अपने जीवन में काम करते देखें।