सोमवार, 28 जुलाई 2008

अध्याय 1 ::: परिचय

जीवन!

जी हां; यह क़िताब जीवन के विषय में है। उनके बारे में जो जीवन को भरपूरी से जी रहे हैं और उनके विषय में जो इसे खो रहे हैं।

क्या आपको नहीं लगता कि आप जिन्दगी से कुछ और चाहते हैं?

क्या आपको ऐसा लगता है कि जीवन में कुछ तो कमी है? क्या आप अपनी जिन्दगी बेहतर जीना चाहते हैं – भरपूरी के साथ? उससे कहीं बेहतर, सफल और सार्थक, जैसी वो आज है!

अगर आपका उत्तर ‘हां’ है, तो मेरे साथ इस यात्रा में शामिल हो जाइये!

एक समय मैं भी अपनी जिन्दगी के महत्वपूर्ण पहलुओं से अनजान था और एक भरपूर ज़िंदगी से महरूम था, पर आज मैं अपने जीवन को बहुत गहराई से, भरपूरी के साथ जी रहा हूँ। मेरे जीवन में मैं एक ऐसी शांति और आनंद का अनुभव करता हूँ जो मेरी समझ से बाहर है। मेरा पूरा विश्वास तथा मेरी अटूट आस्था ईश्वर में है जो कि मेरा परममित्र हो गया है और मेरे जीवन का अधिकार अपने हाथों में रखता है। वो मेरे सारे टेढ़े मेढ़े मार्गों को सीधा करता है, हर मुश्किल में मेरी सहायता करता है, अपनी आशीषें मुझे देता है और एक विजयी जीवन जीने में मेरी सहायता करता है।

मैं ये सारी आशीषें आपके साथ बांटना चाहता हूँ।

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मेरा विश्वास है कि हमारे सृष्टिकर्ता ने हम सबकी सृष्टि किसी उद्देश्य के साथ की है। हम भी जब किसी चीज़ का निर्माण करते हैं तो उसके पीछे कुछ ना कुछ लक्ष्य और उसके इस्तेमाल के लिए कुछ योजना ज़रूर होती है। उसी प्रकार मेरा मानना है कि हमारे सृष्टिकर्ता ईश्वर ने हम में से हरेक के लिए एक योजना रखी है और हरेक के जीवन का एक उद्देश्य़ रखा है।

अनंत आशा से भरपूर, आशीषित तथा संतुष्ट जीवन जीने की कुंजी है – उस उद्देश्य को खोजना तथा उसको पूरा करना। मैं ऐसा हर दिन करता हूँ और हम साथ में इसे सीख सकते हैं।

प्रसिद्ध दार्शनिक, इतिहासकार और तर्कशास्त्री, बर्ट्रांड रसैल, जो अनेक दार्शनिक ग्रथों के लेखक रहे है तथा जो अपने नास्तिक विचारों के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने कहा है – जब तक हम एक ईश्वर की कल्पना ना करें या उसके अस्तित्व को ना मान लें (काल्पनिक ही सही), तब तक जीवन के उद्देश्य के बारे में सोचना निरर्थक है। दूसरे शब्दों में कहें तो जीवन के सही उद्देश्य के बारे में विचार करते समय एक ईश्वर का होना अवश्य है।

यह उसी तरह का सिद्धांत है जैसा हमने बचपन में स्कूल में सीखा था। गणित के सवाल (और प्रमेय अर्थात थ्योरम) हल करने के लिए हम किन्हीं बातों को मान लेते थे और उसी पूर्वधारणा के तहत अपने सवाल हल कर लेते थे।

किसी ने कभी इस बात पर प्रश्न नहीं किया कि हमने अपने सवाल कल्पना के आधार पर क्यों हल किये।

तो क्यों न हम ऐसा ही करें। यदि आप ईश्वर पर आस्था नहीं भी रखते तौभी हम कुछ देर के लिए इस बात को मान लेते हैं की ईश्वर है और हम में दिलचस्पी रखता है।

यदि आप ईश्वर में विश्वास तो करते हैं परंतु उसे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते, यह ऐसा है जैसे सम्भवतया आप भारत के प्रधानमंत्री को जानते तो हैं, परंतु व्यक्तिगत तौर पर नहीं, तौभी हम कुछ देर के लिए इस बात को भी मान लेते हैं की ईश्वर हमसे व्यक्तिगत सम्बंध रखने में रूचि रखता है।

हम इसी अवधारणा के साथ आगे बढ़ते हैं। जैसे जैसे हम आगे चलेंगे, यदि आप विश्वास करें तो ईश्वर का अनुभव कर सकेंगे। आपका इस क़िताब को पढ़ने का निर्णय इस बात का संकेत है कि आपकी इच्छा ईश्वर को पाने की है। प्रभु आपको मनचाहा वरदान दें।

आप कौन हैं, आपने क्य़ा हाँसिल किया है, आप किन बातों में सफ़ल या निष्फ़ल रहे हैं, इन बातों से ईश्वर के प्रेम पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ कि हम अपनी सीमित बुद्धि और संकुचित दृष्टिकोण के कारण जीवन की एक बहुत छोटी और धुंधली तस्वीर देख सकते हैं, क्योंकि हमारी सोच का दायरा उन सभी बातों से बनता है जो कि हम अपने परिवार की परम्परा, हमारी संस्कृति, हमारा धर्म जिसमें हम पैदा हुए, हमारी परिस्थिति, हमारी शिक्षा तथा हमारे अनुभवों के कारण, सीखते हैं। परंतु हमारे सृष्टिकर्ता के पास इस जीवन की सम्पूर्ण तथा स्पष्ट तस्वीर है।

हमारी इस यात्रा के अंत तक आप ईश्वर की आपके बारे में योजना और उद्देश्य को समझ सकेंगे; और यदि आप उसे पूरा करने का निर्णय लेंगे तो शांति, आनंद तथा ईश्वर की आशीषों से भरपूर जीवन आपका होगा।

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अपनी इस यात्रा को शुरू करने से पहले हम कुछ खास बातों को समझ लें जो इस क़िताब को सही तरीके से पढ़ने और ईश्वर से आशीष पाने में हमारी सहायता करेगी।

आइए, एक वैज्ञानिक डाक्टर का उदाहरण देखें-

मान लीजिए, किसी डाक्टर ने एक आम बीमारी का टीका या दवा का अविष्कार किया, जैसे की – सरदर्द या कुछ और, जो गम्भीर ना हो और जिससे हमें डर ना लगता हो; तो हममें से कितने लोग इस अविष्कार में रूचि लेंगे?

मेरे ख़्याल से ज़्यादा नहीं, या शायद कोई नहीं।

परंतु उसी वैज्ञानिक ने यदि कैंसर या एड्स जैसी गम्भीर तथा घातक बीमारी के टीके का निर्माण किया हो तो शायद सारी दुनिया की नज़रें उसी अविष्कार पर लग जाएँगी, खासतौर पर तब, जब यह बीमारी महामारी की तरह फ़ैल रही हो। हम ज़रूर अपने आपको और अपने परिवार को सुरक्षित करना चाहेंगे।

उसी प्रकार यदि हम इस यात्रा के महत्व को ना समझें, तो बहुत संभव है कि हम इस क़िताब को पढ़ने के उद्देश्य को भी खो दें। जीवन बहुत महत्वपूर्ण है और पाप घातक है। पाप कैंसर और एड्स से भी ज्यादा घातक बीमारी है – जो न सिर्फ़ इस जीवन का नाश करता है बल्कि मृत्यु के बाद के आत्मिक जीवन का भी नाश करता है।

मैं आपको सावधान करना चाहता हूँ और यह बताना चाहता हूँ की जीवन बहुत क़ीमती है – यह सिर्फ़ ईश्वर की ओर से मिलता है।

विचार कीजिए – आज की सबसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और तकनीक के बावज़ूद वैज्ञानिक जीवन पैदा नहीं कर सकते हैं और न ही किसी मृत व्यक्ति में जान फ़ूँक सकते हैं। यह सिर्फ़ ईश्वर का काम है।

शायद कोई मुझसे विवाद करना चाहे की वैज्ञानिकों ने डॉली भेड़ का क्लोन बनाया है। बिना किसी विवाद में पड़े, मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा की जो क्लोन वैज्ञानिकों ने बनाया था उसमें भी आरम्भिक ऊत्तक या डी.एन.ए. पहले से जीवित भेड़ से उठाया गया था, जिसको ईश्वर ने ही रचा था।

मेरे एक प्रिय मित्र, जो कि सूक्ष्म-जैविकी (माइक्रोबायोलॉजी तथा बायोटैक्नोलॉजी) में विज्ञान अनुसंधान छात्र हैं, उनके साथ ईश्वर, सृष्टि, पाप तथा उद्धार के सम्बंध में बातचीत करते समय एक बार उन्होंने कहा की वह भी ईश्वर होने का दावा कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने अपने अनुसंधान के दौरान रसायनों के प्रयोगों से कुछ नए प्राणी-जीवों का निर्माण किया है।

जितने विद्वान वो हैं, मुझे इस बात में संदेह नहीं है कि उन्होंने ऐसा प्रयोग किया हो, परंतु मैं इस बात से आश्वस्त नहीं हूँ कि वो सफ़ल रहे होंगे। जितने लोग ऐसा दावा करते हैं, उन सभी से मैं एक सवाल करना चाहता हूँ तथा एक सुझाव देना चाहता हूँ।

मेरा प्रश्न है – ऐसे तमाम प्रयोगों के लिए ज़रूरी सामग्री (अर्थात रसायन इत्यादी) किसने बनाया – क्या वैज्ञानिकों ने या ईश्वर ने? मेरा सुझाव है – यदि आप ईश्वर में विश्वास नहीं करते, तो कोई बात नहीं, किसी दिन शायद करें – परंतु अपने आपको ईश्वर बनाने की या सच्चे ईश्वर का बहिष्कार करने की गलती भयंकर भूल कभी ना करें।

परमेश्वर आपसे प्रेम करता है, यदि आप इस बात को समझ नहीं सकते – तो सिर्फ़ विश्वास ही कर लीजिये। यूं भी, आत्मिक तथा आध्यात्मिक जीवन का सम्बंध समझ से नहीं बल्कि विश्वास से होता है।

मैं समझता हूँ की कोई भी वैज्ञानिक अपने पिता को पिता मानने से पहले डी.एन.ए. (DNA) टेस्ट नहीं कराते। वे भी अपनी माँ, परिजनों तथा अन्य परिचित लोगों की गवाही से यह बात मान लेते हैं। शायद ऐसी परीक्षा करने की बात का विचार भी उनके दिमाग में ना आता हो।

परमेश्वर पर विश्वास करना भी इसी तरह है। आपने उसको नहीं देखा तो क्या हुआ, जिन्होंने उसे देखा है, उसको महसूस किया है, उसके साथ चले हैं – उनकी गवाही पर विश्वास कीजिये। अपने जीवन में बहुत से काम हम विश्वास के द्वारा करते हैं। उन बातों को समझना और साबित करना मुश्किल या नामुमकिन हो सकता है। यहाँ तक कि हम इस बात की ज़रूरत भी नहीं समझते।

उदाहरण के लिए – क्या हम बस या टैक्सी में बैठने से पहले ड्राइवर का लाइसेंस देखते हैं कि वो बस चलाना जानता भी है या नहीं, या फिर क्या हम हवाईजहाज में बैठने से पहले पाइलट की हवाईजहाज उड़ाने की क्षमता को जानने की कोशिश करते हैं। कुर्सी पर बैठने से पहले क्या हम इस बात को जाँचते हैं कि वो हमारा बोझ संभाल सकती है या नहीं या फिर क्या हम सरदर्द की दवा लेने से पहले दवाइयों का रासायनिक विष्लेषण करते हैं? बैंक में पैसा जमा करने से हम अपने कड़े परिश्रम से कमाये पैसे को क्यों सुरक्षित समझते हैं? महीना भर काम करने से पहले हमारे पास क्या आशा होती है कि हमारी तनख़्वाह (सैलेरी) हमें मिल जाएगी? ये सभी काम हम विश्वास से ही तो करते हैं।

जब हम कार या बस में यात्रा करते हैं तब तो हम निशान, हॉर्डिंग तथा दिशा-निर्देशों को देखकर ये जान लेते हैं कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और कहाँ तक पहुँचे हैं, परन्तु जब हम हवाईजहाज में यात्रा करते हैं, तो हमें ना तो दिशा-निर्देश दिखते हैं न कुछ और – सिर्फ़ बादल; और यदि और ऊँचाई पर चले जाएँ तो कुछ भी नहीं बल्कि गहरा नीला आकाश। फ़िर भी क्या हमें विश्वास नहीं रहता की हम अपने गंतव्य (लक्ष्य/ठिकाने) पर पहुँचेंगे?

जब हम पाइलट पर भरोसा कर सकते हैं, तो परमेश्वर पर क्यों नहीं?

इस भौतिक दुनिया में, हम एक कहावत अक्सर सुनते हैं – विश्वास, देखने से होता है – परंतु आत्मिक दुनिया में – देखना, विश्वास से होता है। परमेश्वर को सिर्फ़ विश्वास से ही देखा जा सकता है। यदि आप उसे देखना चाहते हैं तो विश्वास कीजिए की वो है और उन्हें मिलता है जो पूरे मन तथा विश्वास से सही जगह उसको खोजने की इच्छा रखते हैं।

इन सब बातों के कहने से मेरा मतलब यह है कि – जिस प्रकार व्यक्तिगत गवाहियाँ आज भी दुनियाभर में ज़्यादातर अदालतों में मुक़दमों को सुलझाने तथा निर्णय लेने में इस्तेमाल होती हैं – उसी प्रकार यह क़िताब मेरी गवाही है कि किस प्रकार परमेश्वर ने मेरे जीवन में बड़ा परिवर्तन किया है। मैंने पूरा प्रयास किया है कि सब बातें सच्चाई के साथ बता सकूँ कि कैसे परमेश्वर ने मेरा जीवन सार्थक बना दिया है।

मैं अपने जीवन का खुला चित्र आपके सामने रखना चाहता हूँ – कि मैं कौन था, किस प्रकार ईश्वर से मेरी मुलाक़ात हुई, किस प्रकार उसने मेरा जीवन परिवर्तन किया, कैसे उसने पाप की मेरी बड़ी समस्या का निवारण किया, किस प्रकार उसने मुझे शैतान की गुलामी से स्वतंत्र किया और किस प्रकार वो हर पल मेरे साथ रहकर आशीषित जीवन जीने में मेरी सहायता करता है।

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आइए, इस यात्रा के लिए हम कुछ नियम बना लें, ताकि इस यात्रा का पूरा लाभ उठा सकें। आप इनमें से कुछ या सारे नियमों को तोड़ना चाहें तो मैं आपको रोकूंगा नहीं, परंतु तब आप इस क़िताब के पढ़ने का उद्देश्य खो देंगे। हम निम्नलिखित नियमों का पालन करेंगे:
1. हम बाइबल को परमेश्वर का पवित्र तथा जीवित वचन समझेंगे, चाहे आपस में हमारे कितने भी वैचारिक (या धार्मिक भी) मतभेद क्यों न हों।
2. जहां भी बाइबल के वचन इस क़िताब में लिखे हैं उन्हें हम ऊँची आवाज़ में पूरी निष्ठा के साथ पढ़ेंगे और उस पर कुछ देर विचार करेंगे कि परमेश्वर हमसे क्या कहना चाहता है। संभव है की ऐसा करके आप परमेश्वर की मीठी महीन आवाज़ को सुन सकें। उसके बाद (बिना पढ़े और बिना विचार किए नहीं) आप अपने निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
3. शायद आपने ईश्वर को उस तरह से ना पहचाना हो, जैसे मैं आपको बता रहा हूँ; फ़िर भी आप उसे जीवित मानेंगे, ठीक उसी तरह जैसे आप जीवित हैं। शुरू में शायद ये थोड़ा अज़ीब लगे, पर आप उससे वैसे ही बात कर सकते हैं जैसे किसी भी दूसरे जीवित व्यक्ति से करते हैं। उसकी बातें सुनने के लिए हमें बाइबल से पढ़ने की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि परमेश्वर आत्मा है और शारीरिक कानों से उसकी आवाज़ सुनना मुश्किल है (परंतु नामुमकिन फ़िर भी नहीं)।
4. हम इस बात को आधार लेकर आगे चलते हैं कि आप सच में ईश्वर को जानना और पहचानना चाहते हैं और आप इसके लिये सभी वो बातें पूरा करेंगे जो ज़रूरी हैं। मेरा मानना है कि यदि आप नम्रता और दीनता के साथ प्रभु के सम्मुख आएँगे तो वो आपको निराश नहीं करेंगे।
5. इस क़िताब में दी गई सभी जानकारीयों तथा विवरणों को आप मेरे व्यक्तिगत अनुभव की दृष्टि से देखेंगे।
6. बाइबल से पढें और विचार करें


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इस समय, जब आप इस क़िताब को पढ़ते हैं, तो मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वो आपके हरेक प्रश्न का उत्तर दे जो आपके दिमाग में वर्षों से रहे होंगे। मुक्तिदाता, शांतिदाता परमेश्वर आपके साथ रहे। आइए हम साथ में प्रार्थना करें -

हमारे सृष्टिकर्ता परमेश्वर, हम मानते हैं और विश्वास करते हैं कि आप ही ने सारी सृष्टि की रचना की है। सूरज, चाँद, तारों और सारे ग्रहों अर्थात पूरे ब्रहमांड के रचनाकार आप हैं। धरती और इसमें दिखनेवाली हरेक वस्तु को आपने सृजा है। हम आपके आभारी हैं कि आपने हमें यह पुस्तक दी है। जब हम इसको पढ़ते हैं, हमें अपना अनुग्रह दीजिए ताकि हम परमसत्य को जान सकें। हमारी सहायता करें ताकि हम आपसे उद्धार पा सकें। हमारे व्यक्तिगत पापों को क्षमा कर दीजिए और अपने पवित्र आत्मा से भर दीजिये और हमारी आत्मिक आँखों को खोल दीजिये ताकि हम आपको देख सकें और सारे शारीरिक तथा आत्मिक बंधनों से छूट जाएँ। आमीन