सोमवार, 28 जुलाई 2008

अध्याय 3 ::: क्या आप तैयार हैं

"सामान्यतया हम अपने धर्म का चुनाव नहीं करते हैं बल्कि यह हमारे जन्म के साथ ही तय हो जाता है कि हमारा धर्म क्या होगा ठीक उसी प्रकार जैसे जन्म के साथ ही हमारा लिंग भी तय हो जाता है। हमें इनमें से किसी को भी बदलने की ज़रूरत नहीं है, हालांकि कुछ लोग ऐसा करते हैं। धर्म हमें जीवन जीने की नैतिक बातें तो सिखा सकता है पर मोक्ष नहीं दिला सकता, उसके लिये हमें ईश्वर के साथ आत्मिक संबंध बनाना पड़ता है। क्या आप इसके लिये तैयार हैं?"

अपनी जिन्दगी के इक्कीस वर्ष मैंने बिना सुख-शांति के गुज़ार दिए। मैं अपने परिजनों के साथ दुःखों में जीवन व्यतीत करता रहा। मैं मुट्ठी में से निकलती रेत के समान अपना जीवन खोता जा रहा था।

21 वर्ष की उम्र में मैंने जाना कि केवल ईश्वर ही आनंदित, शांतिमय और अनंत जीवन का स्रोत है। वह हमें ऐसी शांति और आनंद देता है जो हमारी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करते बल्कि ये दुःख की कठिन घड़ी में और भी ज्यादा उभर आते हैं। वो निराशा के समय में आत्मविश्वास और आशा का संचार करता है।

यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता प्रभु के रूप में जान लेने के बाद मैंने इस बात पर गहन विचार किया कि सच्ची शांति तथा आशीष का अनुभव करने में मुझे इतने वर्ष क्यों लगे।

अपनी सारी खोज तथा विचार के बाद मैंने यह निष्कर्ष निकाला कि प्रभु यीशु को जानने से पहले मैं परमेश्वर के समीप ही नहीं जाता था और न ही उसके बारे में कुछ सोचता था। मैं बस जीवन से या तो संघर्ष करता जा रहा था या सभी बातों को ऐसे लेने लगा था जैसे वे मेरी नियति थी, जैसे कई लोग कहते थे – मेरी किस्मत।

सच्ची शांति और खुशी सिर्फ़ परमेश्वर की ओर से आती हैं। इन्हें धन, सम्पत्ति, संबंधों, यौन सहवास, प्रसिद्धि इत्यादि दुनिया की अन्यान्य चीज़ों में खोजने के बजाय यदि आप परमेश्वर की चाहत करें तो वो आपके जीवन में सुख-शांति व आनन्द की भरपूरी देगा।

किसी भी व्यक्ति के लिए, जो सच में परमेश्वर से भेंट करना चाहता हो, उसे कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजने की ज़रूरत पड़ेगी। संभवतया, पहले कुछ सवाल ‘कौन’ से शुरू होंगे, जैसे -

मैं कौन हूँ?

ईश्वर कौन है?

सृष्टि का रचनाकार कौन है?

मेरे पापों का न्याय कौन करेगा?

कौन मुझे मेरे पापों से छुड़ा सकता है?

दुसरे तरह के सवालों में ‘क्या’ की श्रेणी आती है -

पाप क्या है?

मेरे पापों का परिणाम क्या है?

मैं ईश्वर को पाने के लिए क्या करूँ?

मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?

मृत्यु के बाद क्या होता है?

स्वर्ग और नर्क क्या होता है?

सच्चाई की खोज के दौरान अगले प्रश्नों की श्रेणी ‘क्यों’ वाली होगी-

मैं क्यों मानता हूँ कि कोई ईश्वर है?

मुझे उससे मिलने की इच्छा क्यों होती है?

परमेश्वर ने मुझे और सारी मानवजाति को क्यों बनाया?
हम पाप क्यों करते हैं?

दुनिया में बीमारियां और दुःख क्यों होते हैं?

हमें मृत्यु क्यों आती है?

आखिरी प्रश्नों की माला ‘कैसे’ वाले सवालों से पूरी होती है।


अपने आप से आप ये सवाल करें और देखें कि आपको क्या उत्तर मिलते हैं?

इस सारी सृष्टि का निर्माण कैसे हुआ?

मेरी रचना कैसे हुई?

मेरे पाप कैसे क्षमा हो सकते हैं?

मैं ईश्वर से कैसे मिल सकता हूँ?

मैं कैसे आशीषित, शांतिमय तथा सार्थक जीवन जी सकता हूँ?

हमें सत्य की प्राप्ति के लिये इन सारे और शायद कुछ और सवालों के उत्तर खोजने की ज़रूरत पड़ेगी। यदि हम ऐसा कर सकें तो कुछ रुकावटें तो स्वतः ही हट जाएँगी। मैं आपको इन सवालों के हल ढूंढने के लिए प्रेरित करना चाहता हूँ।


***

यीशु मसीह के बारे में प्रथमतया सुनने के तुरंत बाद जो पहला काम मैंने किया वो ये था कि मैंने ईश्वर, धर्म तथा मोक्ष के बारे में अपने सारे ज्ञान को जो कि हिन्दू शास्त्रों, सन्तमत, अम्बेड़करवाद की क़िताबें तथा बौध धर्म और राधास्वामी सत्संग के ग्रंथों को पढ़कर अथवा सत्संगों में जाकर मैंने सीखा था, उन सबको मैंने उपरोक्त प्रश्नों की कसौटी पर कसा और पाया कि ये सभी एक समान बातें करते हैं परंतु मेरे सारे सवालों का उत्तर देने में असमर्थ हैं।

अपने इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए मैंने बाइबल को भी पढ़ा। मैंने पाया कि बाइबल तो शुरू ही इन प्रश्नों के उत्तर के रूप में होती है। बाइबल का प्रथम अध्याय इस बात को खोलकर बताता है कि कैसे परमेश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया। बाइबल आगे यह बताती है कि कैसे और किस उद्देश्य के साथ परमेश्वर ने प्रथम नर और नारी (आदम तथा हव्वा) की सृष्टि की और फ़िर कैसे उन्होंने परमेश्वर की नज़र में पहला पाप किया और दुःख, मृत्यु तथा बीमारियों के श्राप को अपने ऊपर ले लिया।

बाइबल स्पष्ट रीति से सभी बातों का खुलासा करती है कि क्यों हम पाप करते हैं, क्यों हम जीवन में अलग अलग समस्याओं का सामना करते हैं। बाइबल ये भी बताती है कि परमेश्वर ने मानव की सृष्टि विशेष तरीके से इस उद्देश्य के साथ की कि वो उसके साथ संगति करे और अपनी स्वतंत्र इच्छा से उससे प्यार करे, यही कारण है कि क्यों सिर्फ़ मनुष्य ही ईश्वर को पाने की इच्छा रखता है परंतु जानवर नहीं और यह ही इस बात का भी कारण है कि क्यों मानव ईश्वर को पाने के लिए अलग अलग धर्म के रूप में नए नए तरीके इज़ाद करता है।

बाइबल हमें परमेश्वर के स्वभाव तथा हमारे प्रति उसकी योजनाओं का भी उल्लेख करती है। बाइबल में मेरे सभी प्रश्नों का सुस्पष्ट जवाब मिला। और गौरतलब बात ये है कि बाइबल का अनुवाद विश्व की बहुत सी भाषाओं में तथा भारत की बहुत सी स्थानीय भाषाओं में हो चुका है। आप इस पुस्तक में लिखी बातों को परमेश्वर के वचन से जांच सकते हैं। आप आज ही बाइबल की एक प्रति लेकर ऊपर बताये सभी सवालों के उत्तर पा सकते हैं। यह एक अनोखी पुस्तक है जो जीवन देती है। जब हम परमेश्वर की आवाज़ सुनना चाहते हैं तो यह हमसे जीवंत रूप में बात करती है।

बाइबल परमेश्वर का जीवित वचन है जो कि पवित्र आत्मा की प्रेरणा से लिखा गया। यह अपने आप में एक पूरा पुस्तकालय है जो कि ऐसी 66 क़िताबों का संकलन है जो कि 40 अलग अलग लेखकों के द्वारा, जो कि अलग अलग व्यक्तित्व के स्वामी थे तथा जीवन क्षेत्रों से संबंध रखते थे (जैसे कोई गडरिया, कोई राजा, कोई वैद्य और कोई चुंगी लेने वाला और कोई मछुआरा), तथा जो कि 1500 वर्षों के समयकाल में 3 अलग अलग महाद्वीपों (अफ़्रीका, एशिया और युरोप) में 3 अलग अलग भाषाओं में लिखी गईं। इतने विविध कारकों के होते हुए भी सभी क़िताबें परमेश्वर के प्रेम के एक ही विषय के बारे में बात करती हैं और जिनमें किसी प्रकार का विरोधाभास नहीं हैं।

क्या ये आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं है?

ये सभी तथ्य इस बात को साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि बाइबल परमेश्वर द्वारा रचित ग्रंथ है। यदि आप इस बात पर विश्वास नहीं करते तो मैं आपको एक नम्र चुनौती देता हूँ कि आप इस दुनिया के किसी भी पुस्तकालय से ऐसी 66 क़िताबों को ढूंढें जो 40 लेखकों के द्वारा (जो कि विभिन्न श्रेणी के लोग हों) 3 विभिन्न महाद्वीपों में 1500 वर्षों के समयकाल में लिखी गई हों जो कि एक ही विषयवस्तु का विवरण हो और उनमें आपस में किसी भी तरह का कोई विरोधाभास न हो। मैं समझता हूँ कि आप इस चुनौती को पूरा नहीं कर पाएँगे।

ईश्वर के मेरे अनुभव के निचोड़ में मैं आपसे सिर्फ़ एक ही बात कह सकता हूँ – हम परमेश्वर को अपनी सीमित बुद्धि से जान नहीं सकते, तौभी परमेश्वर के लिए ऐसी कोई बाधा नहीं जिसे पारकर वह हमें ढूंढ ना सके या अपने आप को हम पर प्रकट ना कर सके। इसीलिए प्रभु यीशु मसीह इस दुनिया में इंसान बनकर आए। वह कोई परदेसी नहीं है बल्कि हमारा सृष्टिकर्ता परमेश्वर है जिसे पाने की आकांक्षा और प्रार्थना हम जीवनभर करते रहे हैं। हालांकि हम उसे समझ नहीं सकते परंतु विश्वास के द्वारा उसका अनुभव ज़रूर कर सकते हैं।

मैं आपको पापों की क्षमा तथा अनंत जीवन की आशा पाने के लिए दो तरीके बता सकता हूँ। पहला ये कि आप विश्वास करें कि यीशु मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं जो आपके व्यक्तिगत पापों की क्षमा कराने तथा स्वर्ग के द्वार आपके लिए खोलने के लिए मानव रूप में आए। यह विश्वास करने के बाद आप उनको अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करें और उन्हें अपने जीवन का सम्पूर्ण अधिकार दे दें। अन्यथा दूसरा तरीका यह है कि इस विषय में आप पूरी खोज करें और सारे निष्कर्ष निकालने के बाद जब आप पाएँ कि यीशु मसीह ही सच्चा परमेश्वर है (जो कि मेरा विश्वास है कि ऐसा ही होगा) जो आपसे प्रेम करता है और जो आपके पापों को क्षमा कर सकता है तो फ़िर उसपर विश्वास करें और प्रार्थना के द्वारा उसे अपने जीवन का स्वामी बनाएँ।

मेरे विचार में, यदि आप पूरा विश्वास कर सकते हैं तो पहला तरीका अच्छा है अन्यथा आप दूसरे तरीके पर विचार करें।


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मेरे व्यक्तिगत जीवन में, मैं परमेश्वर को पाने की अथवा उसे ढूंढने की कोई इच्छा नहीं रखता था, फ़िर भी अपने असीम प्रेम के कारण परमेश्वर ने मुझसे भेंट की तथा मुझे सच्चाई का मार्ग दिखाया ताकि मैं आशीषित तथा सार्थक जीवन जी सकूँ।

मेरा जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। हम लोग इस धर्म की पालना मूर्तिपूजा के द्वारा नहीं करते थे, बल्कि हम मौन साधना तथा सत्संग पद्धति में विश्वास करते थे। जैसा हमें सिखाया गया था उसके अलावा हम ईश्वर के बारे में किसी भी और तरीके से नहीं सोचना जानते थे।

सामान्यतया हम अपने धर्म का चुनाव नहीं करते हैं बल्कि यह हमारे जन्म के साथ ही तय हो जाता है कि हमारा धर्म क्या होगा ठीक उसी प्रकार जैसे जन्म के साथ ही हमारा लिंग भी तय हो जाता है। हमें इनमें से किसी को भी बदलने की ज़रूरत नहीं है, हालांकि कुछ लोग ऐसा करते हैं। हम स्वाभाविक तौर पर ही अपने अपने धर्म का पालन करने लगते हैं और इसी कारण कई बार हम अपने आप को उसी धर्मविशेष की सीमाओं में ऐसे बांध लेते हैं कि सच्चाई की खोज करने तथा उसे स्वीकार करने में हमें असुविधा होती है, खासतौर पर तब, जब सत्य हमें किसी और ही धर्मग्रंथ और विश्वास की ओर संकेत करता है।

मैंने धर्म-परिवर्तन नहीं किया, और न ही धर्म ने मेरा जीवन परिवर्तन किया; इसलिए मैं किसी धर्म में विश्वास नहीं करता और इसीलिए किसी भी धर्म की पैरवी नहीं करूँगा। मैं समझता हूँ कि धर्म हमें अपने रीतिरिवाजों में बांधता है जबकि परमेश्वर हमें स्वतंत्रता देता है। बाइबल के अनुसार उसने हमें यहां तक स्वतंत्रता दी कि हम स्वयं इस बात का चुनाव करें कि हम उससे प्रेम करना चाहते हैं या उसका तिरस्कार। मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मैं धर्म के विषय में बात नहीं करूँगा न ही किसी बात को मानने के लिए आपको बाध्य करूँगा इसलिए आप बिना किसी संकोच के इस पुस्तक को पढ़ सकते हैं।

हाँ, मैं बीच बीच में आपको आत्ममंथन के लिए उत्साहित ज़रूर करता रहूँगा। मैं आपसे नम्र निवेदन करता हूँ कि आप भी अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर परमेश्वर को नये तरीके से देखने का प्रयास करें।

चाहे आप किसी भी सम्प्रदाय के मानने वाले क्यों न हों, रोमन कैथोलिक, मुस्लिम, हिंदू, ईसाई (जिसने नये जन्म का अनुभव नहीं किया), अथवा किसी भी और मत को मानने वाले, सच्चाई ये है कि ईश्वर ने किसी धर्म का प्रतिपादन नहीं किया इसलिए धर्म के विषय में सोचना अथवा विवाद करना व्यर्थ है। मेरे विचार में परमेश्वर को तथा अनंत जीवन को पाना तभी संभव है जब कि हम उसके साथ एक प्रेम संबंध स्थापित करें। हम सभी हाड़-मांस के इंसान है और सांसारिक रूप से शरीर में जन्मे हैं, परन्तु परमेश्वर के साथ संबंध बनाने और उसमें जीवन व्यतीत करने के लिए हमें आत्मिक जन्म लेना आवश्यक है। परमेश्वर आत्मा है और हम उससे आत्मिक तौर पर ही सम्बंध रख सकते हैं।


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मैं मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुआ और पला बढ़ा। मैंने वो सब कुछ किया जो अपनी बढ़ती उम्र में शायद हरेक लड़का करता है। मैंने गलतियां भी की और अपनी समझ में अच्छे काम भी किये। अपने जीवन में मैंने खुशी के क्षण भी देखे और दुःख की घड़ियां भी बिताईं। जीवन निरंतर अपनी गति से एकसमान चलता जा रहा था जब तक कि य़ीशु मसीह से मेरा साक्षात्कार नहीं हुआ जो कि स्वयं हमारे जीवन के लेख का लेखक है। जीवित परमेश्वर को जान लेने से मेरा जीवन समूल परिवर्तित हो गया। उसने अपनी चुनी हुई एक बेटी के द्वारा अपने आप को मुझ पर प्रकाशित किया।

कई बार हम ऐसा सोचते हैं कि हम ईश्वर की खोज करते हैं परन्तु सच्चाई इसके विपरीत है। परमेश्वर हमसे प्यार करता है और उसका यह प्रेम हम पर इसी रीति से प्रकट हुआ है कि जब हम पाप ही में थे तभी मसीह हमारे खातिर मानवरूप में आया ताकि हमें हमारे पापों से छुटकारा दिलाए तथा परमेश्वर के साथ, जो कि हमारी जड़ है और जिसके बिना हम सूखते जा रहे हैं, हमारा मेल कराये। उसने हमारे जैसा साधारण परन्तु पापरहित जीवन जीया, हमारे लिए कांटों और कोड़ों की मार को सह लिया, हमारे पापों की कीमत चुकाने के लिए क्रूस पर अपने प्राण त्याग दिए तथा तीसरे दिन जी उठकर 40 दिन तक अपने चेलों के साथ रहा और फ़िर जीवित स्वर्ग में उठा लिया गया। अब वो पिता परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है और हमारे निमित्त वकालत करता है। मैंने इस संदेश पर विश्वास किया है और इसलिए मेरे पास अनंत जीवन है तथा परमेश्वर में संपू्र्ण आशा है।

ये क़िताब आपके हाथ में है यह इस बात का संकेत कि परमेश्वर आपमें रुचि रखता है और अपनी योजना आप पर प्रकट करना चाहता है। क्या आप उससे आशीष पाने के लिए तैयार हैं? क्या आपने परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानने का निर्णय कर लिया है? मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर आपको इस क़िताब के पढ़ने पर आशीष दें।